आत्मा को अमर माना जाता है, क्यों?
संपूर्ण शरीरिक क्रियाओं का अधिष्ठान आत्मा हे, क्योंकि जब तक शरीर में प्राण रहता है. तब तक वह क्रियाशील रहता हे इस आत्मा के संबंध में बड़ बडे ्त व मेधावी पुरुष भी नहीं जानते। इसे ही जानना मानवजीवन का प्रमुख लक्ष्य है। धार्मिक ग्रंथों के अनुसार आत्मा ईश्वर का अंश है, अत: यह ईश्वर की ही भांति अजर अमर है। संस्कारों के कारण इस दुनिया में उसका अस्तित्व भी हे। वह जब जिस शरीर में प्रवेश करती हे, तो उसे उसी स्त्री या पुरुष के नाम से पुकारा जाता है। आत्मा का न कोई रंग हे ओर न कोई रूप, इसका कोई लिंग भी नहीं होता। बृहदारण्यक उपनिषद् 8/7/1 में आत्मा के संबंध में लिखा हैआत्मा वह है, जो पाप से मुक्त हे, वृद्धावस्था, मृत्यु एवं शोक से रहित है, भूख और प्यास से रहित है, जो किसी वस्तु की इच्छा नहीं करता, यद्यपि उसकी इच्छा करनी चाहिए। श्रीमद्भगवद्गीता में आत्मा की अमरता के विषय में विस्तृत व्याख्या की गई है। न जायते प्रियते वा कदाचिन्नांय भूत्वा भविता वा न भूय:। अजो नित्य: शाश्वतो5यं पुराणो न हन्यते हन्यमाने शरीरे॥ -श्रीमद्भगवद्गीता 2/20 | अर्थात् यह आत्मा किसी काल में भी न तो जन्मती है और न मरती ही है तथा न यह उत्पन्न होकर फिर होने वाली ही है, क्योंकि यह अजन्मा, नित्य, सनातन ओर पुरातन है। शरीर के मारे जाने पर भी यह नहीं मारी जाती। .._ वासांसि जीर्णानि यथा विहाय नवानि गृहणाति नरोडपराणि। तथा शरीराणि विहाय जीर्णान्यन्यानि संयाति नवानि देही॥ -श्रीमद््भगवद्॒गीता 2/22 अर्थात् जैसे मनुष्य पुराने वस्त्रों को त्यागकर दूसरे नए ब्त्रों को ग्रहण करता हे, वैसे ही जीवात्मा पुराने शरीर को त्यागकर दूसरे नए शरीर को प्राप्त करती है। आगे श्लोक 23 व 24 में लिखा है कि आत्मा को शस्त्र नहीं काट सकते , इसको आग नहीं जला सकती, इसको जल नहीं गला सकता और वायु सुखा नहीं सकती, क्योंकि यह आत्मा अछेद्य है, अदाह्म और निसंदेह अशोष्य
है। आत्मा नित्य, सर्वव्यापी, अचल, स्थिर रहने वाला तथा सनातन है। शरीर की मृत्यु के बाद आत्मा को प्रेतयोनि से मुक्ति के लिए 13 दिनों का समय लगता है। इसलिए इस दौरान आत्मा की शांति व मुक्ति के लिए पूजा-पाठ, दान दक्षिणा आदि अनुष्ठान किए जाते हैं। इसके बाद आत्मा पितृलोक को प्राप्त हो जाती है। आत्मा की अमरता का यही दृढ़ विश्वास है।