यह शर्त कब लिखी है
एक मुंशी जी जब अपने यहाँ कोई नौकर रखते थे तो उससे शर्तें लिखवा लिया करते थे। बेचारा नौकर जब अपना वेतन बढ़ाने को कहता तो वह कहते कि यह शर्त इसमें नहीं लिखी है। नौकर जब कहते कि हमें पहनने को कपड़ा या खाना दीजिये तो उनका यही उत्तर होता कि यह शर्त में नहीं लिखा है।
एक बार की बात है कि उनका पाला एक मक्कार नौकर से पड़ गया। उसने मुंशी जी के उत्तरों का एक पक्का उत्तर देने की तथा उन्हें भविष्य में नसीहत देने की बात बहुत दिनों से अपने दिल में सोच रखी थी। एक दिन कचहरी में जब वहाँ पर काफी मात्रा में व्यक्ति इकट्ठा थे
तो मुंशी जी का घोड़ा अपने दोनों पाँवों पर खड़ा हो गया। मुंशीजी ने नौकर से कहा – मेरी रक्षा करो। नौकर ने उत्तर दिया कि मुंशीजी यह शर्त तो कहीं लिखी नहीं है। नौकर ने मुंशी जी को नहीं बचाया जिसके कारण बेचारे मुंशीजी नीचे गिर पड़े और वे जख्मी हो गये।
अन्य लोग नौकर के इस व्यवहार पर जब उसे बुरा भला कहने लगे तो नौकर ने लोगों को मुंशी जी की बातों से अवगत कराया। बेचारे मुंशी जी बड़े शर्मिंदा हुए।