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शंका से भय: एक कहानी जो हमें संदेह की परिभाषा समझाती है

शंका से भय 

एक सेठजी की नौकरानी ने प्रात: दिवाली बनाने के लिए शाम को एक लोटे में गेरू घोल कर रख दिया । नौकरानी ने उस लोटे को सेठजी की खाट के पास रख दिया था। प्रातःकाल कुछ अंधेरे में सेठजी दिशा-मैदान के लिए गये तो उनका पैर गेरु के लोटे पर पड़ गया। जिसके कारण उनकी धोती लाल हो गई।
उन्हें इस बात का पता तब चला जब वे दिशा मैदान में लौट कर आये। वे समझे कि मुझे कोई रोग हो गया है। वह परेशान होकर खाट पर लेट गये। वह कहने लगे कि शरीर से खून बह जाने के कारण जान ही निकली जा रही है। इधर नोकरानी गेरू की खोज करने लगी तो वह सब बात समझ गयी
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उसने सेठजी को बताया कि आपकी धोती खून में नहीं अपितु गेरू में रंग गई है। यह सुनकर सेठजी बहुत प्रसन्न हुए और खाट से उठ बैठे।
वास्तव में प्राणी के दिलो दिमाग में जब कोई चीज बैठ जाती है तो उसका प्रभाव होने लगता है चाहे वह गलत ही क्यों न हो? इसलिए सभी कार्यों को छोड़कर पहले शंका का समाधान अवश्य करना चाहिए।
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