भगवान प्राप्ति के लिये कैसी अपेक्षित
व्याकुलता एक
शिष्य ने अपने
गुरु से पूछा–
भगवन्! भगवत्प्राप्ति के
लिये किस
प्रकार की व्याकुलता
होनी चाहिये
? गुरु मौन रहे।
शिष्य भी
उनका रुख
देखकर शान्त
रह गया। दसरे दिन स्नान के समय
गुरु–शिष्य ने
एक ही
साथ नदी में गोता
लगाया।
शिष्य ने अपने
गुरु से पूछा–
भगवन्! भगवत्प्राप्ति के
लिये किस
प्रकार की व्याकुलता
होनी चाहिये
? गुरु मौन रहे।
शिष्य भी
उनका रुख
देखकर शान्त
रह गया। दसरे दिन स्नान के समय
गुरु–शिष्य ने
एक ही
साथ नदी में गोता
लगाया।
गुरु ने
शिष्य को पकड़कर
एका एक जोर से पानी में
दबाया। वह
बड़े जोर से
छटपटाया और किसी
प्रकार तड़प–कूद
मचा बाहर
निकल आया। स्वस्थ होने पर गुरु ने
पूछा-‘पानी से
निकलने के लिये कितनी आतुरता
थी तुम्हारे
मन में शिष्य बोला-‘बस,
एक क्षण
और पानी में
रह जाता तो
मर ही
गया था
शिष्य को पकड़कर
एका एक जोर से पानी में
दबाया। वह
बड़े जोर से
छटपटाया और किसी
प्रकार तड़प–कूद
मचा बाहर
निकल आया। स्वस्थ होने पर गुरु ने
पूछा-‘पानी से
निकलने के लिये कितनी आतुरता
थी तुम्हारे
मन में शिष्य बोला-‘बस,
एक क्षण
और पानी में
रह जाता तो
मर ही
गया था
गुरु ने कहा-‘बस,
जिस क्षण
संसार रुपी जल से बाहर
निकलकर अपने
परम प्रियतम
प्रभु से मिलने के लिये
यों ही
व्याकुल हो
उठोगे, उसी
क्षण तुम्हारी व्याकुलता उचित रूप में
व्यक्त होगी
और वह
प्रभु को प्राप्त करा
सकेगी।
जिस क्षण
संसार रुपी जल से बाहर
निकलकर अपने
परम प्रियतम
प्रभु से मिलने के लिये
यों ही
व्याकुल हो
उठोगे, उसी
क्षण तुम्हारी व्याकुलता उचित रूप में
व्यक्त होगी
और वह
प्रभु को प्राप्त करा
सकेगी।