वामन द्वादशी
यह एकादशी भाद्रपद में शुक्ल पक्ष की द्वादशी को मनायी जाती हे। इसे ‘वामन द्वादशी’ भी कहा जाता हे। इस दिन स्वर्ण या यज्ञोपवीत से वामन भगवान की प्रतिमा स्थापित कर सुवर्ण पात्र में अर्ध्य दान करें, फल, फूल चढायें और उपवास करें।
पूजन मंत्र
देवेश्वराय देवश्य, देव संभूतिकारिणे।
प्रभाते सर्व देवानां वामनाय नमो नम:1।
अर्ध्य मंत्र-
नमस्ते पद्मनाभाय नमस्ते जलःशायिने।
तुभ्यमर्थ्य प्रयच्छामि वाल यामन अर्पिणे।।1॥।
नम: शार्डा धनुर्पाणि पादये वामनाय च।
यज्ञभुव फलदात्रे च वामनाय नमो नम:॥2॥।
पूजा का दूसरा विधान-
भगवान वामन की सोने कौ मूर्ति के समीप 52 पेडे और 52 दक्षिणा रखकर पूजा करते हैं। भगवान वामन का भोग लगाकर सकोरों में दही, चावल, चीनी, शरबत तथा दक्षिणा ब्राह्मण को दान करके ब्रत का पूर्ण करते हैं। इसी दिन उद्यापन (ब्रत समाप्ति उत्सव) भी करें। उद्यापन में ब्राह्णणों को 1 माला, 2 गउमुखी मण्डल, लाठी, आसन, गीता, फल, छाता, खड़ाऊँ तथा दक्षिणा देते हैं। इस ब्रत को करने से स्वर्ग की प्राप्ति होती है।