वामन द्वादशी की कथा
बलि राक्षस ने एक बार देवताओं को परास्त करके स्वर्ग पर अधिकार कर लिया। उसका अत्याचार देवताओं में अत्यधिक बढ़ने लगा, तो माता अदिति ने अपने पति महर्षि कश्यप को सारा वृतांत सुनाया। अदिति ने पति की आज्ञा पाकर विशेष अनुष्ठान किया।
जिसका परिणाम यह हुआ कि भगवान विष्णु ने वामन का रूप धारण कर बलि के यहां जाकर तीन पग भूमि का दान मांग लिया। बलि तीन पग भूमि देने के लिये दैत्यों के गुर शुक्राचार्य के मना करने पर भी वचनबद्ध हो गये। वामनरूपी विष्णु ने एक पग में पृथ्वी, दूसरे पांव से स्वर्ग तथा ब्रह्मलोक नाप लिया तीसरे पग बलि की पीठ पर रखकर उसे पाताल भेज दिया। देवमाता अदिति की कोख से भाद्रपद शुक्ला द्वादशी को वामनावतार होने से ही इसे वामन-द्वादशी कहा जाता हे।
One Response
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