कहानी आदर्श निर्लोभी साधु की
परम भक्त तुलाधार शुद्र बड़े ही सत्यवादी, वैराग्यवान् तथा निर्लोभी थे। उनके पास कुछ भी संग्रह नहीं था। तुलाधार जी के कपड़ों में एक धोती थी और एक गमछा। दोनों ही बिलकुल फट गये थे। मैले तो थे ही। वे नाम मात्र के वस्त्र रह गये थे, उनसे वस्त्र की जरूरत पूरी नहीं होती थी। तुलाधार नित्य नदी नहाने जाते थे, इसलिये एक दिन भगवान् ने दो बढ़िया वस्त्र नदी के तीर पर ऐसी जगह रख दिये, जहाँ तुलाधार की नजर उन पर गये बिना न रहे। तुलाधार नित्य के नियमानुसार नहाने गये। उनकी नजर नये वस्त्रों पर पड़ी। वहाँ उनका कोई भी मालिक नहीं था, परंतु इनके मन में जरा भी लोभ पैदा नहीं हुआ। उन्होंने दूसरे की वस्तु समझकर उधर से सहज ही नजर फिरा ली और स्रान-ध्यान करके चलते बने। दूर छिपकर खड़े हुए प्रभु, भक्त का संयम देखकर मुसकरा दिये।