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तनिक-सा भी असत्य पुण्य को नष्ट कर देता है

महाभारतके युद्धमें द्रोणाचार्य पाण्डब-सेनाका संहार कर रहे थे। ये बार-बार दिव्यास्त्रोंका प्रयोग करते थे। जो भी पाण्डव-पक्षका वीर उनके सामने पड़ता, उसीको वे मार गिराते थे। सम्पूर्ण सेना विचलित हो रही थी। बड़े-बड़े महारथी भी चिन्तित हो उठे थे। 

* आचार्यके हाथमें शस्त्र रहते तो उन्हें कोई पराजित कर नहीं सकता। वे स्वयं शस्त्र रख दें, तभी विजय सम्भव है। युद्धके प्रारम्भमें उन्होंने स्वयं बताया है कि कोई अत्यन्त अप्रिय समाचार विश्वस्त व्यक्तिके द्वारा सुनायी पड़नेपर वे शस्त्र त्यागकर ध्यानस्थ हो जाया करते हैं।’ पाण्डवोंकी विपत्तिके नित्यसहायक श्रीकृष्णचन्द्रने सबको यह बात स्मरण करायी। 
भीमसेनको एक उपाय सूझ गया। वे द्वोणपुत्र अश्वत्थामासे युद्ध करने लगे। युद्ध करते समय भीम अपने रथसे उतर पड़े और अश्वत्थामाके रथके नीचे 
गदा लगाकर रथके साथ उसे युद्धभूमिसे बहुत दूर फेंक दिया उन्होंने। कौरव-सेनामें एक अश्वत्थामा नामका हाथी भी था। भीमसेनने एक ही आधघातसे उसे भी मार दिया और तब द्रोणाचार्यके सम्मुख जाकर पुकारपुकारकर कहने लगे–‘ अश्वत्थामा मारा गया। अश्वत्थामा मारा गया।! 
द्रोणाचार्य चौंके, किंतु उन्हें भीमसेनकी बातपर विश्वास नहीं हुआ। युधिष्ठिससे सच्ची बात पूछनेके लिये उन्होंने अपना रथ बढ़ाया। इधर श्रीकृष्णचन्द्रने युधिष्ठिरसे कहा–‘महाराज! आपके पक्षकी विजय हो, इसका दूसरा कोई उपाय नहीं। आचार्यके पूछनेपर ‘ अश्वत्थामा मारा गया’ यह बात आपको कहनी ही चाहिये। मेरे कहनेसे आप यह बात कहें।’ 
धर्मराज युधिष्ठिर किसी प्रकार झूठ बोलनेको प्रस्तुत नहीं थे; किंतु श्रीकृष्णचन्द्रका कहना वे टाल भी नहीं सकते थे। द्रोणाचार्यने उनके पास आकर पूछा कि भीमसेनकी बात सत्य है या नहीं तो बड़े कष्टसे उन्होंने कहा–‘ अश्वत्थामा मारा गया।’ सर्वथा असत्य उनसे फिर भी बोला नहीं गया। उनके मुखसे आगे निकला-“मनुष्य वा हाथी’ परंतु जैसे ही युधिष्ठिरे कहा’अश्वत्थामा मारा गया” वैसे ही श्रीकृष्णचन्द्रने अपना पाञ्जजन्य शह्ढु बजाना प्रारम्भ कर दिया। युधिष्टिरके अगले शब्द उस शद्डुध्वनिके कारण द्रोणाचार्य सुन ही नहीं सके। 
धर्मराज युधिष्ठिरका रथ उनकी सत्यनिष्टाके प्रभावसे सदा पृथ्वीसे चार अंगुल ऊपर ही रहता था; किंतु इस छल वाक्यके बोलते ही उनके रथके पहिये भूमिपर लग गये और आगे उनका रथ भी दूसरे रथोंके समान भूमिपर ही चलने लगा। इसी असत्यके पापसे सशरीर स्वर्ग जानेपर भी उन्हें एक बार नरकका दर्शन करना पड़ा। 
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