संसार के सम्बन्ध भ्रममात्र हैं
शूरसेन प्रदेश में किसी समय चित्रकेतु नामक अत्यन्त प्रतापी राजा थे। उनकी रानियों की तो संख्या ही करना कठिन है, किंतु संतान कोई नहीं थी। एक दिन महर्षि अडिगरा राजा चित्रकेतु के राजभवन में पधारे। संतान के लिये अत्यन्त लालायित नरेश कों देखकर उन्होंने एक यज्ञ कराया और यज्ञशेष हविष्यान्न राजा की सबसे बड़ी रानी कृतधुति को दे दिया।