कथा : प्राचीन समय की बात है एक जमींदार के दो पुत्रियां थी। पहली इस ब्रत को पूरा करती थी तथा दूसरी अधूरा ही किया करती थी। अतः दूसरी के जो सनन््तान होती वह मर जाया करती थी। उसने पंडितों से पूछा कि मेरी संतान जीवित क्यूं नहीं रहती तब पंणिडतों ने बताया कि तुम पूर्णिमा का ब्रत अधूरा करती हो इससे तुम्हारी संतान जीवित नहीं रहती।
इतना जान लेने पर दूसरी पुत्री व्रत करने लगी। किन्तु थोड़े दिन बाद लड़का हुआ और होते ही मर गया तो उसने मृत लड़के को सुलाया व बड़ी बहन के पास गई। उसे बुलाकर लाई। वो जैसे ही बैठने लगी इसे छुते ही बच्चा जीवित हो उठा और रोने लगा। बच्चे की आवाजसुनते ही छोटी बहिन हर्षित होकर कहने लगी बहिन ये तेरे भाग्य से जीवित हो गया है। क्योंकि व्रत पूर करती थी और मैं अधुरा। इस दोष से मेरे बच्चे मर जाते थे ओर गांव में ढिंढोश पिटवा दिया कि जो कोई पूर्णिमा का ब्रत करे वह पूरा करे। अधूरा न करें।