राई दामोदर की कहानी
एक छोटी-सी लड़की थी। कार्तिक नहाया करती थी। कार्तिक का महीना पूरा हुआ। सब बोलीं-गंगा जी जावे जमुना जी जावे हरिद्वार जावे। एक स्त्री बोली-मैं तो राई दामोदर भगवान जिमाऊँगी। वे कहने लगीं-बह कैसे होते हैं? वह स्त्री बोली-मोर मुकुट, गले में वैजयन्ती माला और थ में पीताम्बर ऐसे हैं राई दामोदर भगवान हाँ ऐसे हैं। वह लड़की घर गई भगवान की रसोई बनाई, मन्दिर में आई।
आओ मेरे भगवान मन्दिर में भगवान नहीं मिले। मन्दिर से शहर गई, शहर से जंगल, पहाड़ों पर चढ़ गई। सुबह से शाम हो गई भगवान को पुकारते सोचने लगे यह तो ऊपर से गिर के मरेगी, मेरे सिर हत्या इसको तो दर्शन देने ही पड़ेंगे। भगवान ब्राह्मण का रूप दे आये और बोलेचल बेटा तेरा भगवान मैं हूँ तू मुझे जिमा वह बोली-तुम मेरे भगवान नहीं हो। ब्राह्मण बोला-तेरे भगवान कैसे हैं? उसने उत्तर दिया-मेरे भगवान तो मोर मुकुट ट वाले, गले में बैजयन्तों माला पहने हुए और हाथ में पीताम्बर लिये हुए हैं। ब्राह्मण बोला-ऐसे हें तेरे भगवान! हाँ ऐसे ही हैं मेरे भगवान! वह बोली। भगवान ने चतुर्भुजी रूप दिखाया । खुश होकर बोली-हाँ हाँ तुम ही मेरे भगवान हो। आगे आगे वह छोटी सी लड़की भागी जा रही थी, पीछे-पीछे भगवान जा रहे थे, भागी-भागी संग की सहेलियों के घर गई ओर बोली मेरे घर मेरे भगवान आये हें सब बोलीं-हाँ इसके घर में भगवान आये थे। उनमें से कोई एक बोली-देखो तो सही इसके भगवान कैसे हैं? जिनके भाग्य में भगवान के दर्शन थे उन्होंने आकर भगवान के दर्शन पाये। हे राई दामोदर भगवान जैसे उस लड़की को दर्शन दिये वैसे सब किसी को देना।