Home Hindu Fastivals दुर्गा के नौ रूपों कथा – हिन्दुओ के व्रत और त्योहार

दुर्गा के नौ रूपों कथा – हिन्दुओ के व्रत और त्योहार

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दुर्गा के नौ रूपों कथा 

शास्त्रों के अनुसार दुर्गा मां के नौ रूप हैं इन नौ रूपों की कथा का वर्णन नीचे दिया जा रहा है
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1. महाकाली-एक समय की बात है कि संसार में प्रलय आ गई, और चारों ओर पानी ही पानी नजर आने लगा। उस समय भगवान विष्णु की नाभि से कमल की उत्पत्ति हुई उस कमल से ब्रह्माजी की उत्पत्ति हुई। इसके अतिरिक्त भगवान विष्णु के कानों से कुछ मैल निकला था। उस मैल से मधु ओर केटभ नाम के दो राक्षस बने। मधु और कैटभ ने जब चारों ओर देखा तो ब्राह्माजी को देखकर उन्हें अपना भोजन बनाने की सोचने लगे ओर उनके पीछे दोड़ पडे। तब ब्रह्माजी ने भयभीत होकर भगवान विष्णु की स्तुति की। ब्रह्माजी की स्तुति से विष्णु भगवान को न खुल गई और उनकी आँखों में निवास करने वाली महामाया लोप हो गई। 
भगवान विष्णु के जागते ही मधु-कैटभ उनसे युद्ध करने लगे। कहा जाता है कि यह युद्ध पाँच हजार वर्षों तक चला था। अन्त में महामाया ने महाकाली का रूप धारण कर इन दोनों राक्षसों की बुद्धि को बदल दिया। वे दोनों असुर भगवान विष्णु से बोले हम तुम्हारे युद्ध-कौशल से बहुत प्रसन्‍न हैं, तुम जो चाहे वर मांग लो। भगवान विष्णु ने कहा कि यदि तुम कुछ देना ही चाहते हो तो ये वर दो कि दैत्यों का नाश हो। उन्होंने तथास्तु कह दिया। इस प्रकार महाबली दोनों देत्यों का नाश हो गया। 
2, महालक्ष्मी-प्राचीन कालीन समय में महिषासुर नामक एक दैत्य था। उसने सभी राजाओं को परास्त करके पृथ्वी और पाताल पर अधिकार कर लिया। स्वर्ग पर अधिकार करने के लिये उसने देवताओं पर चढाई कर दी। देवताओं ने अपनी रक्षा के लिय भगवान विष्णु और भगवान शंकर से प्रार्थना कौ। उनकी प्रार्थना से भगवान शंकर और भगवान विष्णु प्रसन्‍न हुए। उनके शरीर से एक तेज पुंज निकला, जिसने महालक्ष्मी का रूप धारण कर लिया। इन्हीं महालक्ष्मी ने महिषासुर देत्य को युद्ध में परास्त कर देवताओं के कष्टों का निवारण किया। 
3. चामुण्डा-संसार में दो राक्षसों की उत्पत्ति हुई थी। जिनका नाम शुम्भ ओर निशुम्भ था। वे इतन शक्तिशाली थे कि पृथ्वी और पाताल के सब राजा उनसे परास्त हो गये। अब उन्होंने स्वर्ग पर चढाई कर दी। देवताओं ने भगवान विष्णु की स्तुति की। उनकी इस प्रार्थना अनुन्य से विष्णुजी के शरीर से एक ज्योति प्रकट हुई जो चामुण्डा के नाम से प्रसिद्ध हुए वह बहुत ही सुन्दर थी। उनके रूप सौन्दर्य से प्रभावित होकर शुम्भ-निशुम्भ ने सुग्रीव नाम एक दूत देवी के पास भेजा कि वह हम दोनों में से किसी एक के साथ विवाह कर ले। उस दूत को देवी ने यह कहकर वापिस भेज दिया कि जो मुझे युद्ध में परास्त करेगा मेरा विवाह उसी के साथ होगा। दूत के मुँह से यह समाचार सुनकर उन दोनों दैत्यों ने पहले युद्ध के लिये अपने सेनापति धूप्राक्ष को आक्रमण के लिये भेजा। धूप्राक्ष सेना सहित मारा गया। 
इसके बाद चण्ड-मुण्ड लड़ने आए। चण्ड-मुण्ड भी देवी के हाथों मारे गये। अब रक्तबीज लड़ने आया। उसके शरीर से रक्त की एक बूंद जमीन पर गिरने से एक वीर पेदा हो जाता था। इस पर देवी ने रक्तबीज के शरीर से निकले खून को अपने खप्पर में लेकर पी लिया। इस प्रकार रक्‍तबीज भी मारा गया। अन्त में शुम्भ-निशुम्भ लड़ने आये और देवी के हाथों मारे गये। सभी देवता दैत्यों की मृत्यु से बहुत ही प्रसन्‍न हुए। 
4. योगमाया-जब कंस ने वसुदेव और देवकी के छह: पुत्रों का वध कर दिया तो सातवें गर्भ के रूप में शेषनाग के अवतार बलरामजी आये जो रोहिणी के गर्भ में स्थानान्तरित होकर प्रकट हुए। तब आठवें गर्भ में श्री कृष्ण भगवान प्रकट हुए। उसी समय गोकुल में यशोदाजी के गर्भ रे योगमाया ने जन्म लिया। वसुदेव जी कृष्ण को गोकुल छोड़ आये ओर गाय बदले में योगमाया को वहां से ले आये। जब कंस ने कन्या रूपी योगमाया के विषय में जाना तो इसे भी पटक कर मारना चाहा तो वह उसके हाथ से छूटकर आकाश में चली गयी और देवी का रूप धारण कर लिया। आगे चलकर इसी योगमाया ने कृष्ण के हाथों योगविद्या ओर महाविद्या बनकर कंस, चाणूर आदि शक्तिशाली असुरों को परास्त करके उनका संहार किया।  
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5, रक्तदन्तिका-वैप्रचिति नाम के असुर ने बहुत-से कुकर्म करके पृथ्वीवासियों और देवलोक में देवताओं का जीवन दुर्लभ कर दिया देवताओं ओर पृथ्वी वासियों की प्रार्थना पर दुर्गा देवी ने रक्तदन्तिका नाम से अवतार लिया। देवी ने वैप्रचिति आदि असुरों का रक्तपान करके मानमर्दन कर डाला। देवी के रक्तपान करने के कारण इसका नाम रक्‍तदन्तिका पड़ गया। । 
6. शाकुम्भरी देवी-एक बार की बात है जब पृथ्वी पर सूखा पड़ने के कारण सौ वर्ष तक वर्षा नहीं हुई थी। चारों ओर सूखे के कारण हाहाकार मच गया। वनस्पति सूख गई। उस समय वर्षा के लिये ऋषि मुनियों ने मिलकर भगवती देवी की उपासना की। तब माँ जगदम्बा ने पृथ्वी पर शकुम्भरी नाम से स्त्री रूप में अवतार लिया ओर उनकी है कृपा से पृथ्वी पर जल की वर्षा हुई। इससे पृथ्वी के समस्त जीव-जन्तुओं और वनस्पतियों को जीवन जीने का दान मिला। 
7. श्री दुर्गा देवी-एक समय की बात है जब दुर्गम नाम के राक्षस के अत्याचार इतने बढ़ गये कि पृथ्वीबासियों में, पाताल निवासियों और, देवताओं में कोहराम मच गया। ऐसी स्थिति में विपत्ति के समय में भ्रववान की शक्ति दुर्गा ने अवतार लिया। दुर्गा ने दुर्गम राक्षस का संहार करके पृथ्वी पर रहने वालों और देवताओं पर आने वाली इस विपत्ति को ६र किया। दुर्गम राक्षस को मारने के कारण ही तीनों लोकों में इनका नाम॑ र्गा देवी के नाम से प्रसिद्ध हो गया। 
8, भ्रामरी-एक समय की बात है जब अरुण नाम के असुर के अत्याचारों की सीमा इतनी बढ़ गयी कि वह स्वर्ग में रहने वाली देव-पत्रियों के सतीत्व को नष्ट करने का कुप्रयास करने लगा। अपने सतीत्व की रक्षा के लिए देव-पत्नियों ने भोंरों का रूप धारण कर लिया ओर दुर्गा देवी से अपने सतीत्व की रक्षा के लिये प्रार्थना करने लगीं। देव-पत्लियों को इतना दुखी देखकर उनका उद्धार करने के लिये दुर्गा ने भ्रामरी का रूप धारण कर अरुण असुर का सेना सहित संहार किया। 
9, चण्डिका-एक बार पृथ्वी लोक में चण्ड ओर मुण्ड नामक दो राक्षस पैदा हुए। इन दोनों राक्षसों ने पृथ्वी लोक, पाताल लोक और देव लोक पर अपना अधिकार कर लिया। इस पर देवताओं ने दुःखी होकर मातृ शक्ति देवी का स्मरण किया देवताओं की स्तुति से प्रसन्‍न होकर देवी ने चण्ड-मुण्ड राक्षसों का विनाश करने के लिये चण्डिका के रूप में अवतार लिया।  
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