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महालक्ष्मी व्रत की कथा – हिन्दुओ के व्रत और त्योहार

महालक्ष्मी व्रत की कथा 

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एक गांव में एक ब्राह्मण रहता था। वह ब्राह्मण रोज नियम से विष्णु भगवान के मन्दिर में जाकर पूजा-अर्चना किया करता था। उसकी पूजा से भगवान अति प्रसन्‍न हुए ओर उसे साक्षात दर्शन दिये। भगवान ने उसे लक्ष्मी जी को प्राप्त करने का उपाय बताया कि मन्दिर के सामने रोज सुबह एक स्त्री उपले थापने आती है। तुम उस स्त्री के चरण पकड़कर अपने घर चलने का आग्रह करना ओर उसके चरण तब तक नही छोड़ना जब तक वह तुम्हारे साथ जाने को तैयार न हो जाये। वही मेरी भार्या लक्ष्मी है। उसके तुम्हारे घर आते ही तुम्हारा घर धन-धान्य से परिपूर्ण हो जायेगा। इतना वचन कहकर भगवान विष्णु अर्न्ध्यान हो गये। ओर ब्राह्मण भी अपने घर लोट आया। 
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दूसरे दिन वह सुबह चार बजे ही मन्दिर के सामने जाकर बैठ गया। लक्ष्मी जी उपले थापने आयीं तो ब्राह्मण ने उनके चरण कमल पकड़ लिये। और अपने घर चलने का आग्रह किया। लक्ष्मी जी समझ गई कि यह सब विष्णु जी की कारस्तानी है। तब लक्ष्मी जी बोलीं-तुम अपनी पत्नी सहित मेरा सोलह दिन तक ब्रत करो फिर सोलहवें दिन रात्रि को चन्द्रमा की पूजा करो और उत्तर दिशा में मुझे पुकारना। तब तुम्हारा मनोरथ पूरा होगा। 
ब्राह्मण ने ऐसा ही किया। जब रात्रि को चंद्रमा की पूजा करके उत्तर दिशा में आवाज लगाई तो लक्ष्मी जी ने अपना वचन पूर्ण किया। इस प्रकार यह व्रत महालक्ष्मी के नाम से प्रसिद्ध हुआ। हे लक्ष्मी जी! जैसे तुम ब्राह्मण के घर आयीं वैसे सभी के घर आने की कृपा करना। 
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