कार्तिक मास की गणेशजी की कथा
एक समय कि बात है कि अगस्त्य मुनि समुद्र तट के किनारे बैठकर कठोर तपस्या कर रहे थे। जहां वह बेठे थे वहां से थोड़ी ही दूरी पर एक पक्षी अपने अंडों पर बैठा उन्हें से कह रहा था। अचानक समुद्र में तूफान आया ओर जल का बहाव इतना तेज था कि उस पक्षी के अण्डे उसमे बह गये। उस पक्षी को बहुत दुख हुआ। उसने प्रण लिया कि में समुद्र के जल को समाप्त कर दूंगा। पक्षी अपनी चोंच से समुद्र का जल भर-भरकर बाहर फेंकने लगा। पर समुद्र तो इतना विशाल था कि कुछ असर ही नहीं हो रहा था। चोंच से उसे कैसे सुखाया जा सकता था फलत: काफी समय बीत जाने पर भी समुद्र का जल सूखना तो क्या, थोड़ा भी नहा घटा। दुखी होकर पक्षी मुनि अगस्त्य के पास गया और अपनी सारी दुख भरी व्यस्था कह सुनाई। मुनि ने गणेशजी का ध्यान एवं उनकी आराधना कर गणेश चतुर्थी का ब्रत किया। गणेशजी की ऐसी कृपा हुई कि मुनि अगस्त्य के अन्दर समुद्र का जल पीने की अक्षम्य क्षमता आ गई ओर उन्होंने समुद्र का सारा जल सोख लिया। इससे उस पक्षी के अण्डे बच गये।