Home Hindu Fastivals कृष्ण जन्माष्टमी की कथा – हिन्दुओ के व्रत और त्योहार

कृष्ण जन्माष्टमी की कथा – हिन्दुओ के व्रत और त्योहार

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कृष्ण जन्माष्टमी की कथा

राक्षमों के अत्याचार द्वापर युग में पृथ्वी पर अत्यधिक बढ़ने लगे थे। पृथ्वी गाय का रूप धारण करके अपना दुख सुनाने ओर अपने उद्धार के लिये ब्रह्माजी के पास गई। ब्रह्माजी सब देवताओं को साथ में लेकर पृथ्वी को विष्णु के पास क्षीर सागर ले गये। उस समय भगवान विष्णु अनन्त शैय्या पर शयन कर रहे थे। विनती ओर स्तुति करने पर भगवान की निद्रा टूट गई ब्रह्माजी और वहां एकत्र समस्त देवतागण को देखकर उन्होंन उनमे आने का कारण पूछा तो पृथ्वी बोली-”भगवन्‌! में पाप के बोझ से दबी जा रही हूँ। मेरा उद्धार कीजिए।” यह सुनकर विष्णु भगवान बाले-‘में बृज मण्डल में वसुदेव की पत्नी देवकी के गर्भ से जन्म लूंगा तुम सब देवतागण ब्रजभूमि में जाकर यादव वंश में अपना शरीर धारण करो।”’ इतना कहकर भगवान अर्न्तध्यान हो गये।
इसके बाद देवता ब्रज मण्डल में आकर यदुकुल में नन्द-यशोदा तथा गोप गोपियों के रूप में पैदा हुए।
द्वापर काल के अन्त में मथुरा नगरी में राजा उग्रसेन राज्य करते थे। राजा उग्रसेन के पुत्र का नाम कंस था। कंस ने उग्रसेन को बलपूर्वक सिंहासन से उतारकर बंदी बनाकर जेल में डाल दिया और खुद राजा बन बैठा। कंस की बहन देवकी का विवाह यादव वंश के कुल में बसुदेव जी के साथ निश्चित किया गया। जब कंस देवकी को विदा करते हुए रथ के साथ चल रहा था, तभी अचानक ही एक आकाशवाणी हुई कि-“’हे कंस! जिस देवकी को तू बड़े लाड-दुलार के साथ विदा कर रहा है इसी का आठवां पुत्र तेरी मृत्यु का कारण बनेगा अर्थात्‌ तेरा संहार करेगा। यह बात सुनकर कंस को बहुत क्रोध आया ओर उसने देवकी का मारने की ठान ली। उसने सोचा, कि जब देवकी ही नहीं रहेगी तो उसका पुत्र कहां से होगा।
कंस का यह क्रोध देखकर वसुदेव जी ने कंस को समझाते हुए कहा कि तुम्हे देवकी को मारने की कोई आवश्यकता नहीं है। तुम्हें तो देवकी के आंठवें पुत्र से है। इसलिये देवकी से भय कैसा? इसलिये हे राजन देवकी की आठवीं संतान मैं तुम्हें सॉंप दूंगा। फिर तुम्हारी समझ में जो आये उसके साथ वही करना। कंस ने वसुदेवजी की बात स्वीकार कर ली। इसके बाद कंस ने वसुदेव ओर देवकी को कारागार में बंद कर दिया। तत्काल नारद जी वहां आ गये ओर कंस से बोले कि यह केसे पता चलेगा कि आठवां गर्भ कौन-सा होगा। गिनती प्रथम से या अन्तिम गर्भ से होनी चाहिए। कंस ने नारद जी की सलाह को माना। और देवकी के गर्भ से जो भी सन्‍्तान उत्पन्न हुई उन सभी को मौत के घाट उतारने का निश्चय कर लिया। इस प्रकार कंस ने एक-एक करके देवकी के छः: पुत्रों को निर्दयतापूर्वक मार डाला।
भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को रोहिणी नक्षत्र में श्रीकृष्ण का जन्म हुआ। उनके जन्म लेते ही जेल की कोठरी प्रकाशमय हो गई। वसुदेव और देवकी के सामने शंख, चक्र, गदा एवं पद्मधारी चतुर्भुज भगवान ने अपना रूप प्रकट करते हुए कहा-“’अब मैं बालक का रूप धारण करता हूं। तुम मुझे बु्त ही गोकुल में नंद के यहां पहुंचा दो ओर उनके यहां कन्या जन्मी है उस कन्या को लाकर आप कंस को सौंप दो । १)
तुरन्त ही वसुदेवजी की हथकडियां खुल गई। दरवाजे अपने आप खुल गये। पहरेदार सो गये। वसुदेव कृष्ण को टोकरी में रखकर गोकुल को चल पड़े। रास्ते में यमुना नदी श्री कृष्ण के चरणस्पर्श करने के लिये बढ़ने लगीं तो भगवान ने अपने पैर लटका दिये। चरण छू लेने के बाद यमुना जी घट गयीं और वसुदेव जी को रास्ता दिया। वसुदेव जी यमुना पार कर गोकुल में नंद के यहां गये। बालक कृष्ण को यशोदा जी की बगल में सुलाकर कन्या को लेकर वापस कंस के कारागार में आ गये। जेल के दरवाजे अपने आप बंद हो गये। वसुदेव जी के हाथों में हथकडियां पड़ गई, सभी पहरेदार जाग गये। कन्या के रोने की आवाज सुन कर कंस के कानों तक पहुंची। कंस ने कारागार में आकर कन्या को लेकर पत्थर पर पटककर मारना चाहा परन्तु वह कंस के हाथ से छूटकर आकाश में उड़ गयी और देवी का रूप धारण करके बोली “’हे कंस! मुझे मार कर दे क्या लाभ मिलेगा? तुझे मारने वाला तेरा शत्रु गोकुल में पहुंच चुका
।’” यह दृश्य देखकर कंस हतप्रभ और व्याकुल हो उठा।
कंस ने श्री कृष्ण को मारने के लिये अनेक दैत्य भेजे। अनक घडयन्त्र रचे। श्रीकृष्ण ने अपनी अलौकिक माया से सारे दैत्यों को मार दिया। बडे होने पर श्रीकृष्ण ने कंस को मारकर ठग्रसेन को राजगददी सौंपी। श्रीकृष्ण की पुण्य जन्म तिथि को तभी से मारे देश में बड़े हर्योलल्तास से मनाया जाता है
गूंगा नवमी
जन्माष्टमी के दूसरे दिन सुबह गूंगा नवमी की पूजा की जाती है। इस दिन एक मोटी-सी मीठी रोटी बनाकर उस पर घी-बूरा रखकर साथ में एक कटोरी में चावल वाली खीर रखते हैं और रसोई की दीवार पर गुंगा नवमी बनाकर उसके सामने जोत जगाकर, थाली में रोटी-घी-बूरा, खीर सस्‍लैप पर रखकर, गूंगाजी महाराज को रोली से टीका लगाते हैं ओर अपने माथे पर भी हल्दी से टीका लगाते हैं। हाथ में गेहूं लेकर धोक देते हैं। और मन ही मन कहते हैं कि-हे गूंगा महाराज! घर में सब ठीक-ठाक रहे। सभी पर अपनी कृपादृष्टि बनाये रखना। बाद में सारा पूजा किया हुआ सारा सामान कुम्हार या जोगी के यहां भिजवा देते हैं और लोटे का पानी गमले में डाल देते हैं फिर सभी परिवार जन वही खाना खाते हैं।
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