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करवा चौथ की कथा – हिन्दुओ के व्रत और त्योहार

करवा चौथ की कथा 

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किसी समय इंद्रप्रस्थ में वेद शर्मा नामक एक विद्वान ब्राह्मण रहता था जिसके सात बेटे और एक बेटी थी जो कि सातों भाइयों की लाडली बहन थी। आठों भाई बहन एक साथ बेठकर खाना खाते थे। कार्तिक की चौथ आने पर बहन ने करवा चौथ का ब्रत रखा। जब सातों भाई खाना खाने आए तो उन्होंने बहन को भी खाने के लिए बुलाया तो मां बोली-आज इसका करवा चौथ का ब्रत है और जब चांद निकलेगा तब यह अर्ध्य देकर ही खाना खाएगी। तब भाइयों ने जंगल में आग जलाकर छलनी में से चांद दिखा दिया। बहन भाभियों से बोली कि चलो अर्ध्य दे लो, चांद निकल आया हे। भाभियां बोलीं कि ये तेरा चांद निकला है हमारा चांद तो रात को निकलेगा। बहन चांद को अर्ध्य देकर भाइयों के साथ खाने बैठ गई। पहला टुकड़ा तोड़ा तो राजा के घर से बुलावा आया कि राजा का लड़का बीमार हे जल्दी भेजो। मां ने लड़की के पहनने के कपडे निकालने को तीन बार बक्सा खोला तीनों बार सफेद कपडे निकले तब मां ने वही कपडे पहनाकर ससुराल भेज दिया। लड़की की साडी के पल्‍ले में एक सोने का सिक्‍का बांधकर मां ने कहा कि रास्ते में जो भी मिले सबके पैर पकड़ती जाना जो तुझे सुहाग की आशीष देवें, उसे ही यह सिक्‍का देकर अपने फल्ले में गांठ लगा लेना। रास्ते में किसी ने भी पैर पड़ने पर सुहाग की आशीष नहीं दी ओर सबने यही आशीष दी ठंडी हो, सब्र करने वाली हो, सातों भाइयों की बहन हो, अपने भाइयों का सुख देखने वाली हो। अब ससुराल के घर पहुंची तो दरवाजे पर छोटी ननद खड़ी मिली। बहन उसके पैर पड़ी तो ननद बोली सीली हो, सपूती हो, सात बेटों की मां हो मेरे भाई का सुख देखने वाली हो। यह आशीष सुनकर सोने का सिक्का ननद को दिया और अपने पलले में गांठ मार ली। अन्दर गई तो सासूजी ने कहा कि ऊपर कोठरी है वहां जाकर बैठ जा। जब वह ऊपर गई तो उसने अन्दर जाकर देखा कि उसका पति मर चुका है। अब वह उसे लेकर उसी कोठरी में पड़ी रही और उसकी सेवा करती रही। उसकी दास दासियों के हाथ बची खुची रोटी भेज देती। इस प्रकार उसे अपने पति की सेवा करते करते एक साल हो गया। करवा चौथ का ब्रत आया। सारी पड़ोसनों ने नहा धोकर करवा चौथ का व्रत रखा। सबने सिर धोकर हाथों में मेंहदी लगाई, चूडियां पहनीं। वह सब देखती रही। एक पड़ोसिन बोली-तू भी करवा चौथ का ब्रत कर ले। तब वह बोली-में कैसे करूं तो पड़ोसन बोली-चौथ माता की कृपा से सब ठीक हो जायेगा। पड़ोसन के कहने पर बहू ने भी व्रत रखा। थोड़ी देर के बाद करवे बेचने वाली आई। करवे लो हे करवे लो। भाइयों की प्यारी करवे लो, दिन में चांद उगवानी करवा लो, ज्यादा भूख लगने वाली करवे लो। बहू ने आवाज लगाई  ऐ करवे वाली, मेरे को करवे दे जा। करवे वाली कहने लगी मेरी दूसरी बहन आयेगी वो तेरे को करवे देगी। दूसरी बहन आई-करवे लो री करवे, भाइयों की प्यारी करवे लो, दिन में चांद उगवानी करवे लो ज्यादा भूख लगने वाली करवे लो। बहू ने आवाज लगाई-ऐ करवे वाली, मेरे को भी करवे दे जा। दूसरी करवे वाली बोली-मेरी तीसरी बहन आयेगी वो तेरे को करवे देगी। इस प्रकार पांच बहनें आकर चली गई, पर किसी ने भी करवे नहीं दिये। फिर छठी बहन आई ओर बोली-मेरी सातवीं बहन आयेगी वह तुझे करवे देगी। तू सारे रास्ते में कांटे बिखेरकर रख देना। तब उसके पैर में कांटा चुभ जायेगा तो वह खूब चिल्लाती हुई आएगी। तब तू सुई लेकर बैठ जाना और उसका पैर पकड़कर मत छोड़ना और उसका पैर का कांटा निकाल देना। -वह तुझे आशीर्वाद देगी तो तुम उससे करवे मांग लेना। तब वह तुझे करवे देकर जायेगी तब तू उद्यापन करना जिससे तेरा पति अच्छा हो जायेगा। अब उसने वैसा ही किया। सारे रास्ते में कांटे बिछा दिये। जब सातवीं बहन करवे लेकर आई तो पांव में कांटा चुभने के दर्द से खूब चिल्लाई तो उसने उसका पैर पकड़कर छोडा नहीं और उसका कांटा निकाल दिया। जब उसने आशीर्वाद दिया तब बहू ने उसके पैर पकड़ लिये और बोली कि जब तूने मुझे आशीर्वाद दिया है तो करवे भी देकर जायेगी। उसने बोला-तूने तो मुझे ठग लिया। यह कहकर चौथ माता ने उसे आंख में से काजल, नाखूनों पर से मेंहदी, मांग में से सिंदूर और चित्तली अंगूठी का छींटा और साथ ही करवे भी दिये। अब करवे लेकर बहू ने उद्यापन की तैयारी की, ओर ब्रत रखा। राजा का लड़का ठीक हो गया और बोला -में बहुत सोया। वह बोली-सोये नहीं बारह महीने हो गये आपकी सेवा करते करते। कार्तिक की चौथ माता ने सुहाग दिया है। उसका पति बोला कि चौथ माता का उद्यापन करो। अब उसने चौथ माता की कहानी सुनी, उद्यापन कर खूब सारा चूरमा बनाया और जीमकर वे दोनों चोपड़ खेलने लग गये। इतने में उसकी बांदी तेल की बनी पूरी सब्जी लेकर आ गई दोनों को खेलते देखकर सासू से जाकर बोली-महलों में खूब रोनक है। तुम्हारे बहू बेटे चोपड़ खेल रहे हें। इतनी सुनकर सासू देखने आई। दोनों को देखकर बहुत खुश हो गई। बहू ने सासू के पैर दबाये ओर सासू बोली-बहू! सच सच बता, तूने क्‍या किया? उसने सारा हाल अपनी सासू को बताया तो राजा ने सारे शहर में ढिंढोरा पिटवाया कि अपने पति के जीवन के लिए सब बहनें करवा चौथ का ब्रत रखें। पहली करवा चौथ को अपने पीहर में जाकर ब्रत करें। हे! चौथ माता जैसा राजा के लड़के को जीवन दान दिया वैसा सभी को देना। मेरे पति को भी देना। कहते-सुनते सब परिवार की स्त्रियों को भी सुहाग देना। इसके बाद विनायक जी की कहानी भी कह सुन लेते हैं। 
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