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चिड़ा-चिड़ी की कहानी – हिन्दुओ के व्रत और त्योहार

चिड़ा-चिड़ी की कहानी 

इस कहानी को कार्तिक पूर्णमासी के अगले दिन पड़वा को पढ़ते हैं। आटे से घर बनाते हैं और आटे के चिड़ा-चिड़ी बनाकर घर के बीचों बीच रखते हैं उन्हें वस्त्र पहनाते हैं घर के सभी कमरों में घर का सारा सामान रखते हैं और चिड़ा चिड़ी को खील बताशे व लड्डू का भोग लगाते हैं। 
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इस दिन खिचड़ी बनाते हैं और घी और आम का आचार रखकर ठाकुर जी का भोग लगाकर खुद भी प्रशाद लेते हें। सूखी खिचड़ी मंदिर में भी देते हैं। 
चार चिडियां थीं। चारों कार्तिक नहाती थीं। आई पड़वा चारों ने सोचा चलो खिचड़ी बनाएं। एक चिड़िया चावल ले आई, एक चिडिया दाल ले आई, एक चिडिया घी ले आई, सबने मिलकर खिचडी बनाई। सबने सोचा कि पहले नहाकर आती हें फिर सब बैठकर खिचड़ी खाएंगी। पहले एक चिडिया आई उसे भूख लग रही थी बाकी चिडियां अभी नहीं आई थीं तो उसने खिचड़ी की भाप खा ली। दूसरी चिड़िया आई उसने पानी पी लिया। तीसरी चिड़िया ने खिचड़ी खा ली और चौथी चिडिया ने खुरचन खा ली। चारों चिडियां मर गई। जिस चिड़िया ने भाप खाई थी वो राजा के घर राजकुमारी बनी, जिस चिडिया ने पानी पिया था वो कुम्हार की लड़की बनी, जिस चिड़िया ने खिचड़ी खाई थी वो ब्राह्मण की लड़की बनी, जिस चिड़िया ने खुरचन खाई थी वो हथिनी बनी। कुम्हार की लड़की राजा के यहां दासी बनी, ब्राह्मण की लड़की राजकुमारी की सहेली बनी। हथिनी भी राजा के यहां थी। राजकुमारी को पिछले जन्म की सब बातें याद थीं। राजकुमारी की शादी हुई जब वह विदा हो रही थी तो राजा से बोली कि में अपनी सहेली और दासी को साथ ले जाऊँगी। 
राजा ने कहा कि ले जाना। राजकुमारी फिर भी न जाए राजा ने कहा कि अब तुम्हें क्या चाहिए तो वो बोली कि मुझे हथिनी भी चाहिए, राजा ने नौकर भेजे कि हथिनी को ले आओ पर वह हथिनी उठे ही ना तो राजकुमारी खुद उसके पास गई और उसके कान में पिछले जन्म की बात कही जिसे सुनकर हथिनी उठकर खड़ी हो गई। राजा यह सब देख रहा था तलवार लेकर खड़ा हो गया कि बता तू कोन है ओर हथिनी से क्या बात कर रही थी। सच-सच बता नहीं तो तेरा सर काट दूंगा। राजकुमारी ने राजकुमार को पिछले जन्म की सारी बात बता दी। राजा ने कहा कि कार्तिक नहाने का इतना फल होता है तो हम भी जोडे से कार्तिक नहाएंगे, और खूब दान-पुण्य करेंगे। 
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