बिन्दायक जी की कहानी
एक छोटा-सा बालक था वह अपने घर से लड़॒कर निकल गया ओर बोला कि आज तो मैं बिन्दायक जी से मिलकर ही घर जाऊँगा। तब लड़का चलते-चलते उजाड़ वन में चला गया तो बिन्दायक जी ने सोचा कि इसने मेरे नाम से ही घर छोड़ा है। इसलिये इसे घर भेजना चाहिए नहीं तो जंगल में शेर वगेहरा खा जायेंगे। फिर बिन्दायक जी बूढ़े ब्राह्मण का भेष धारण कर आये और बोले कि तू कहाँ जा रहा है? तब वह बोला कि मैं बिन्दायक जी से मिलने जा रहा हूँ। तब वह बोले कि में ही बिन्दायक जी हूँ, माँग, तू क्या माँगता है? परन्तु एक बार ही माँगना। वह लड़का बोला कि क्या माँगूँ, “अन्न हो, धन हो, हाथी की सवारी हो, महल बैठी स्त्री ऐसी हो जैसे फूल गुलाब का।” तो बिन्दायक जी बोले कि लड़के तूने सब कुछ माँग लिया। जा तेरा सब कुछ ऐसी ही हो जायेगा। फिर वह लड़का घर आया तो देखा कि एक छोटी-सी बहू चौकी पर बैठी हे और घर में बहुत धन हो गया। तब वह लड़का अपनी माँ से बोला कि देख माँ, कितना धन लाया हूँ। बिन्दायक जी से माँगकर लाया हूँ। हे बिन्दायक जी महाराज! जैसे उस लड़के को धन-दौलत दी वैसे सब किसी को देना कहने वाले को भी और सुनने वाले को भी और हमारे सारे परिवार को देना।