श्रावण मास की गणेशजी की कथा
देवों के देव महादेव जी की पत्नी जगतमाता ने अपने पिता दक्ष के यज्ञकुण्ड में अपना शरीर-त्याग कर दिया तो अगले जन्म में उन्होंने पर्वतराज हिमालय की पत्नी मेना के गर्भ से जन्म लिया। वहां वे पार्वती के नाम से विख्यात हुई। पार्वती की इच्छा थी कि पति-रूप में उन्हें महादेव प्राप्त हों, जो पूर्व जन्म में उनके पति थे। इसके लिये उन्होंने घोर तपस्या की। पर महादेवजी प्रस-न नहीं हुए और उन्हें सफलता हासिल नहीं हुई।
पार्वती इतने पर भी निराश नहीं हुई। उन्होंने अनादिकाल से कृपा करने वाले गणेशजी का मनन किया। गणेश जी अतिप्रसन्न होकर पार्वती जी के पास आये तब उन्हें पार्वती जी की इच्छा का ज्ञान हुआ तो छन्होंने पार्वती से गणेश चौथ का ब्रत ओर पूजन करने का परामर्श दिया।
परामर्श देकर गणेशजी अन्तर्थ्यान हो कर चले गये। गणपति जी के पैशमर्श के अनुसार पार्वती जी ने गणेश चोथ का ब्रत और पूजन दोनों किया। इसके फलस्वरूप उन्हें भोले-भण्डारी शिवजी पतिरूप में प्राप्त हो गये।
धर्मराज युधिष्ठिर ने भी अपना खोया हुआ गज्य वापस पाने के
लिये भी इस व्रत को किया और अपना राज्य पुनः: वापस प्राप्त कर लिया। श्रावण मास में पूरी माह व्रत रखना चाहिये। स्कन्ध पुराण में तीस अध्याय है। अत: श्रावण मास के प्रत्येक दिन स्कन्ध पुराण के एक अध्याय को पढ़ना या श्रवण करना चाहिये। प्रतिदिन प्रात: ब्रह्ममुहूर्त में सस्नानादि से निवृत हो जाएं। इन्द्रियों को वश में रखें। यह माह मनोकामनाओं का इच्छित फल प्रदान करने वाला हे।
स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण कर प्रतिदिन शिव-मन्दिर जाकर शिवजी की पूरी श्रद्धा से पूजा करें। नियम पूर्वक शिवजी के बिल्व-पत्र प्रतिदिन निश्चित संख्या (5, 11, 21, 31, 51, 108,) में और आंकड़े के पुष्प चढ़ाने का संकल्प ले तथा पूरे मास उसी संख्या में बिल्व-पत्र ओर पुष्प चढ़ाये ओर पूजा करें। श्रावण मास में आंकड़े के पुष्प बहुत कठिनाई से प्राप्त होते हैं। अत: संख्या सोच विचार कर ही निश्चित करें।
इस माह में रूद्राष्टाध्यायी पाठ द्वारा शिवजी का पंचामृत से अभिषेक करें तथा शिवजी का रूद्रीपाठ द्वारा सहस्त्रधारा से अभिषेक करें। सहस्त्रधारा अभिषेक हेतु तांबे कलश के चोौड़े पेंद में एक हजार एक सौ एक छोटे छोटे जल निकलने लायक छिद्र करवा दें। यदि एक हजार एक सौ एक छिद्र में से एक सौ एक छिद्र बन्द भी हो जाएगें तो भी 1000 छिद्र तो रहेंगे जिसके द्वारा जल निकल सकेगा। ३७ न: शिवाय: के साथ ही पुरुष सुक्तम का जप भी अधिक फलदायक है। क्
यह महीना शिवजी को जितना प्रिय है उतना सम्पूर्ण वर्ष में कोई माह प्रिय नहीं हे। अतः इस माह में महामृत्युन्जय मन्त्र, शिवसहस्त्रनाम, रूद्राभिषेक, शिवमहिम्न स्त्रोत, शिव ताण्डव स्त्रोत, महामृत्युञज्जय सहस्त्रनाम आदि मन्त्रों का आप जितना अधिक जाप कर सके, उतना करें व शिव चालीसा अवश्य पढे या विद्वान, ईमानदार श्राह्मणों से करवाएं।