बैकुण्ठ चतुर्दशी की कहानी (2)
महाभारत का युद्ध होने पर जिस समय भीष्म पितामाह सूर्य के उत्तरायण होने की प्रतीक्षा में शरशेय्या पर शयन कर रहे थे उस समय भगवान कृष्ण पांचों पांडबवों को साथ लेकर उनके – पास गये। उपयुक्त अवसर जानकर युधिष्ठिर ने भीष्म पितामाह से प्रार्थना की कि आप हमें राजधर्म सम्बन्धी उपदेश देने की कृपा करें। तब भीष्म पितामाह ने पांच दिनों तक राजधर्म, वर्णधर्म, मोक्षधर्म आदि पर उपदेश दिया था। उनका उपदेश सुनकर श्री कृष्ण सन्तुष्ट हुए ओर बोले-”पितामाह! आपने कार्तिक शुक्ल एकादशी से पूर्णिमा तक पांच दिनों में जो धर्ममय उपदेश दिया है, उससे मुझे बड़ी प्रसन्नता हुई है। में इसकी स्मृति में आपके नाम पर भीष्म पंचक व्रत स्थापित करता हूं। जो लोग इसे करेंगे वे जीवन भर विविध सुख भोग कर अन्त में मोक्ष प्राप्त करेंगे।