दुर्याधन के मेवा त्यागे
द्वारकाधीश श्रीकृष्णचन्द्र पाण्डवों के संधि-दूत बनकर आ रहे थे। धृतराष्ट्र के विशेष आदेश से हस्तिनापुर सजाया गया था। दुःशासन का भवन, जो राजभवन से भी सुन्दर था, वासुदेव के लिये खाली कर दिया गया था। धृतराष्ट्र ने आदेश दिया था -‘ अश्व, गज, रथ, गायें, रत्र, आभरण और दूसरी जो भी वस्तुएँ हमारे यहाँ सर्वोत्तम हों, बहुमूल्य हों, वे दुःशासन के भवन में एकत्र कर दी जायें। वे सब श्रीवासुदेव को भेंट कर दी जायें।