एक बार भगवान् श्रीकृष्णचन्र अपने सम्पूर्ण परिवार-परिकर आदिके साथ सिद्धाश्रम तीर्थमें स्नान . करने गये। दैवयोगसे श्रीराधिकाजी भी वहाँ अपनी सखियोंके साथ स्नान करने आयी थीं। बड़े ठल्लासके साथ उभय-पक्षके लोगोंका सम्मिलन हुआ। भगवान्की पटरानियोंने स्वयं प्रभुके मुखसे श्रीराधिकाजीकी बढ़ी महिमा सुन रखी थी। अतएव समय निकालकर वे एकान्तमें श्रीराधिकाजीसे मिलीं। श्रीराधाजीने उनका बड़ा सत्कार किया। बातचीतके प्रसड़में उन्होंने कहा–‘बहिनो! चन्द्रमा एक होता है; परंतु चकोर अनेक होते हैं। सूर्य एक होता है, किंतु नेत्र अनेक होते हैं
चन्द्रो यथेको बहवश्चकोरा: सूर्यो यथेको बहवो दृशः स्युः। श्रीकृष्णचन्द्री. भगवांस्तथेव भक्ता भगिन्यो बहवो वबय॑ चख॥’
उनके वार्तालापका श्रीकृष्णपत्रियोंपर बड़ा प्रभाव पड़ा। वे आग्रह करके राधिकाजीको अपने स्थानपर ले आयीं। वहाँ सभीने उनका बड़ा स्वागत किया, भोजनादि भी कराया और अन्तमें श्रीरुक्मिणीजीने स्वयं दूध पिलाया। तत्पथ्चात् अनेक प्रकारके शिष्ट-संलाप होनेके बाद श्रीराधाजी अपने स्थानपर लौट आयीं। शयनके समय श्रीरुक्मिणीजी नित्य-नियमानुसार प्रभुके चरण दाबने बैठीं। चरणतलोंके दर्शन करते ही वे आश्चर्यमें डूब गयीं। उन्होंने देखा भगवानके चरणतलपर तमाम फफोले पड़ रहे हैं। विस्मित होकर उन्होंने सभी सहेलियोंको बुलाया। सभी आश्चर्यसे दंग रह गयीं। भगवानसे पूछनेका किसीको साहस नहीं था। अन्तमें प्रभुने नेत्र खोलकर सबके वहाँ एकत्रित होनेका कारण पूछा। उत्तरमें उन लोगोंने चरणोंक फफोले दिखलाये। पहले तो भगवानने टालना चाहा। पर अत्यन्त आग्रह करनेपर उन्होंने कहा-| श्रीरीाधिकाया हृदयारविन्दे पादारविन्दं हि विराजते मे। अद्योष्णदुग्धप्रतिपानतो 5ड्घ्ला – वुच्छालकास्ते मम प्रोच्छलन्ति॥
अर्थात् श्रीराधाके हृदयमें मेरे चरणकमल दिन-रात विराजमान रहते हैं। तुमने उन्हें बहुत गरम दूध दे दिया। श्रीराधा उसे तुम्हारा दिया हुआ समझकर पी गयीं। दूध उनके हृदयमें गया और इससे मेरे चरणकमलमें फफोले पड़ना स्वाभाविक था।
प्रभुके वचनसे महिषियोंको बड़ा ही आश्चर्य हुआ। तबसे वे अपने प्रेमको श्रीराधाजीके प्रभु-प्रेमके सामने अत्यन्त तुच्छ मानने लगीं।