श्री दुर्ग नवरात्री व्रत
इस ब्रत में उपवास या फलाहार आदि का कोई विशेष नियम नहीं। प्रातःकाल उठकर स्नान करके, मन्दिर में जाकर या घर पर ही नवरात्रों में दुर्गाजी का ध्यान करके यह कथा पढ़नी चाहिए। कन्याओं के लिए यह व्रत फलदाया है।
श्री जगदम्बी की कूपा से सब विघन दूर होते है। कथा के अन्त में बारम्बार “दुर्गा माता तेरी सदा जय हो” का उच्चारण करे आश्विन शुक्ला अष्टमी का दुर्गा अष्टमी मानते हैं। इस दिन दुर्गा देवी की पूजा का विधान है। मां भगवती को चने, हलवा, पुडी, खीर आदि का भोग लगाया जाता है। पश्चिमी बंगाल में शक्ति को अधिक महत्व दिया जाता है। वहां बहुत उत्सव मनाया जाता है। इस दिन देवी की ज्योति करके, कुवारी कन्याओं को जिमाते हैं। अष्टमी या नवमी के दिन सपरिवार मुख्य पूजा में नारियल बघारते हैं, लापसी चावल का भाग लगाते हैं। माताजी के जवारे चढ़ाते है। भोग लगाते हैं। 9 कुंवारी कन्याओं को जिमाते है। उन्हें दक्षिणा भी दी जाती है।