का महिना चल रहा है, इस महीने में हिन्दू कोई भी शुभ काम नहीं करते हैं शादी -व्याह करना , कपडे -गहने खरीदना आदि अशुभ माना जाता है | लोग अपने मरे हुए पूर्वजो (पितरो ) का आवाहन करते हैं , पिंडदान, तिलांजलि , दान और ब्राह्मणों को भोजन करवाना आदि कर्मकांड किये जाते हैं |
(पुत्र पिता के अनुकूल कर्म करने वाला और माता के साथ उत्तम मन से व्यवहार करने वाला हो)
श्राद्ध जीवितों का ही हो सकता है, मृतकों का नहीं ,पितर संज्ञा भी जीवितों की ही होती है मृतकों की नहीं| वैदिक धर्म की इस सत्यता को सिद्ध करने लिए सबसे पहले पितर शब्द पर विचार लिया जाता है|
महाभारत, रामायण आदि शास्त्रों के अवलोकन से यह स्पष्ट विदित हो जाता है कि पितर संज्ञा जीवितों कि है मृतकों कि नहीं |
त आ गमन्तु त इह श्रुवन्त्वधि ब्रुवन्तु ते अवन्त्वस्मान !! (यजुर्वेद:-१९-५७)
(हमारे द्वारा बुलाये जाने पर सोमरस का पान करनेवाले पितर प्रीतिकारक यज्ञो तथा हमारे कोशों में आएँ.वे पितर लोग हमारे वचनों को सुने,हमें उपदेश दें तथा हमारी रक्षा करें)
(हे पितरो ! आप घुटने टेक कर और दाहिनी ओर बैठ कर हमारे इस अन्न को ग्रहण करें)
इस मन्त्र का अर्थ करते हुए सायण , महीधर,उव्वट और ग्रिफिथ साहब –सब घुटने झुककर वेदी के दक्षिण ओर बैठना बता रहे है..क्या मुर्दों के घुटने होते है? इस वर्णन से प्रकट हो जाता है कि जीवित प्राणियों की ही पितर संज्ञा है|
त्रयस्ते पितरो ज्ञेया धामे च पथि वर्तिनः !! (वाल्मीकि रामायण )
(धर्म -पथ पर चलने वाला बड़ा भाई , पिता और विद्या देने वाला –ये तीनों पितर जानने चाहिएँ)
अन्नदाता भयस्त्राता पञ्चैता पितरः स्मृताः !! ( चाणक्य नीति :५-२२)
(विद्या देनेवाला , अन्न देनेवाला,भय से रक्षा करने वाला ,जन्मदाता –ये मनुष्यों के पितर कहलाते है)
दूसरा दोष अकृताभ्यागम का होगा..कर्म किया नहीं और फल प्राप्त हो जाए,उसे अकृताभ्यागम कहते है..मनुष्य के न्याय में तो ऐसा हो सकता है कि कर्म कोई करे और फल किसी और को मिल जाए,परन्तु परमात्मा के न्याय में ऐसा नहीं हो सकता..पौराणिक कहते है कि फल को अर्पण करने के कारण दूसरे को मिल जाता है, परन्तु यह बात ठीक नहीं..बेटा किसी व्यक्ति को मारकर उसका फल पिता को अर्पण कर दे तो क्या पिता को फांसी हो जायेगी? यदि ऐसा होने लग जाए तब तो लोग पाप का संकल्प भी पौराणिक पंडितों को ही कर दिया करेंगे…इन दोषों के के कारण भी मृतक श्राद्ध सिद्ध नहीं होता|
पौराणिकों ! यह भोजन करने का क्या तरीका है? पहले पितर खाते है या ब्राह्मण?झूठा कौन खाता है ?क्या पितर ब्राह्मण के मल और खून का भोजन कर�������े है?
एक बात और पितर शरीर सहित आते है या बिना शरीर के? यदि शरीर के साथ आते है तो पेट में उतनी जगह नहीं कि सब उसमे बैठ जाएँ और साथ ही आते किसी ने देखा भी नहीं अतः शरीर को छोड़ कर ही आते होंगे |पितरों के आने-जाने में ,भोजन परोसने में तथा खाने आदि में समय तो लगता ही है,अतः पितर वहाँ जो शरीर छोड़ कर आये है उसे भस्म कर दिया जाएगा,इस प्रकार सृष्टि बहुत जल्दी नष्ट हो जायेगी | मनुष्यों की आयु दो-तीन मास से अधिक नहीं होगी,जब क्वार का महिना आएगा तभी मृत्यु हो जायेगी,अतः श्राद्ध कदापि नहीं करना चाहिए|
सावधान ! पौराणिक लैटर बाक्स में छोड़ा हुआ पार्सल अपने स्थान पर नहीं पहुँचता….