अमर सूक्तियां
संसार के अनेकों महापुरुषों ने अनेक महावचन कहे हैं. कुछ मैं प्रस्तुत कर रहा हूँ. जो जैसा चाहे वैसे प्रयोग कर ले.
#1 |
अच्छा अंतःकरण |
टामस फुलर |
#2 |
अंतर्ज्ञान दर्शन की एक मात्र कसौटी |
शिवानंद |
#3 |
मुझे अंधकार से प्रकाश की ओर ले चलो। |
बृहदारण्यक उपनिषद् |
#4 |
अग्नि स्वर्ण को परखती है, संकट वीर पुरुषों |
अज्ञात |
#5 |
अच्छा स्वास्थ्य एवं अच्छी समझ जीवन के |
प्यूब्लियस साइरस |
#6 |
अज्ञान से बढ़कर कोई अंधकार नहीं है। |
शेक्सपियर |
#7 |
अज्ञानी का संग नहीं करना चाहिए। |
आचारांग |
#8 |
अति से अमृत भी विष बन जाता है। |
लोकोक्ति |
#9 |
सभी वस्तुओं की अति दोष उत्पन्न करती |
भवभूति |
#10 |
अधिक खाने से मनुष्य श्मशान जाता है। |
लोकोक्ति |
#11 |
अतिथि का अतिथ्य करना श्रेष्ठ धर्म है। |
अश्वघोष |
#12 |
अतिथि सबके आदर का पात्र होता है। |
अज्ञात |
#13 |
दरिद्रों में दरिद्र वो है जो अतिथि का |
तिरुवल्लुवर |
#14 |
अत्याचार सदा ही दुर्बलता है। |
जेम्स रसेल लावेल |
#15 |
अधिक का अधिक फल होता है। |
अज्ञात |
#16 |
अधिकार जताने से अधिकार सिद्ध नहीं |
रवीन्द्रनाथ ठाकुर |
#17 |
अधिकार केवल एक है और वह है सेवा का |
संपूर्णानंद |
#18 |
अध्ययन उल्लास का और योग्यता का कारण |
बेकन |
#19 |
अध्ययन आनंद, अलंकार तथा योग्यता |
बेकन |
#20 |
अनंत जीवन का एकमात्र पाथेय है धर्म। |
रवीन्द्रनाथ ठाकुर |
#21 |
अनुभव को खरीदने की तुलना में उसे |
चार्ल्स कैलब काल्टन |
#22 |
बिना अनुभव के कोरा शाब्दिक ज्ञान अंधा |
स्वामी विवेकानंद |
#23 |
अनुशासन परिष्कार की अग्नि है, जिससे प्रतिभा |
अज्ञात |
#24 |
अभय ही ब्रह्म है। |
बृहदारण्यक उपनिषद् |
#25 |
अभावों में अभाव है-बुद्धि का अभाव। |
तिरुवल्लुवर |
#26 |
अभिमान को जीत से नम्रता जाग्रत् होती |
महावीर स्वामी |
#27 |
शुभार्थियों को अभिमान नहीं होता। |
कल्हण |
#28 |
अभिमान करना अज्ञानी का लक्षण है। |
सूत्रकृतांग |
#29 |
बिना जाने हठ पूर्वक कार्य करनेवाला |
सोमदेव |
#30 |
कोई ऐसी वस्तु नहीं, है जो अभ्यास करने |
बोधिचर्यावतार |
#31 |
सच्चा अर्थशास्त्र तो न्याय बुद्धि पर |
महात्मा गाँधी |
#32 |
अवगुण नाव की पेंदी के छेद के समान है, जो चाहे छोटा हो या |
कालिदास |
#33 |
पराय धन का अपरहण, परस्त्री के साथ |
वाल्मीकि |
#34 |
जो अवसर को समय पर पकड़ ले, वही सफल होता है। |
गेटे |
#35 |
अवसर उनकी मदद कभी नहीं करता जो अपनी |
कहावत |
#36 |
‘असंभव’ एक शब्द है, जो मूर्खो के |
नेपोलियन |
#37 |
असमय किया हुआ कार्य न किया हुआ जैसा |
अज्ञात |
#38 |
अहंकार छोड़े बिना सच्चा प्रेम नहीं |
स्वामी विवेकानंद |
#39 |
तलवार मारे एक बार, अहसान मारे बार-बार। |
लोकोक्ति |
#40 |
अहिंसा परम श्रेष्ठ मानव-धर्म है, पशु-बल से वह अनंत |
महात्मा गाँधी |
#41 |
अकेली आँख ही बता सकती है कि हृदय में |
तिरुवल्लुवर |
#42 |
जो औरों के लिए रोते है, उनके आँसू भी हीरों |
रांगेय राघव |
#43 |
स्वयं पर आग्रह करो, अनुकरण मत करो। |
एमर्सन |
#44 |
छोटी नदियाँ शोर करती हैं और बड़ी |
सुत्तनिपात |
#45 |
आचरण दर्पण के समान है, जिसमें हर मनुष्य |
गेटे |
#46 |
आत्मविश्वास सफलता का प्रथम रहस्य है। |
एमर्सन |
#47 |
आत्मसम्मान रखना सफलता की सीढ़ी पर पग |
अज्ञात |
#48 |
यह आत्मा ब्रह्म है। |
बृहदारण्यकोपनिषद् |
#49 |
मनुष्य की आत्मा उसके भाग्य से अधिक |
अरविंद |
#50 |
आत्मिक शक्ति ही वास्तविकता शक्ति है। |
शिवानंद |
#51 |
आदर्श कभी नहीं मरते। |
भागिनी निवेदिता |
#52 |
आनंद का मूल है-संतोष। |
मनुस्मृति |
#53 |
आनंद वह खुशी है जिसके भोगनें पर |
सुकरात |
#54 |
पढ़कर आनंद के अतिरेक से आँखें यदि |
शरत्चंद्र |
#55 |
आपदा एक ऐसी वस्तु है जो हमें अपने |
विवेकानंद |
#56 |
नारी का आभूषण शील और लज्जा है। बाह्य |
बृहत्कल्पभाष्य |
#57 |
विद्वित्ता, चतुराई और |
अज्ञात |
#58 |
आरोग्य परम लाभ है, संतोष परम धन है, विश्वास परम बंधु है, निर्वाण परम सुख है। |
धम्मपद |
#59 |
धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष का |
चरक संहिता |
#60 |
आलस्य मनुष्यों के शरीर में रहने वाला |
भर्तृहरि |
#61 |
आलस्य दरिद्रता का मूल है। |
यजुर्वेद |
#62 |
आवश्यकता अविष्कार की जननी है। |
|
#63 |
आवश्यकता से अधिक बोलना व्यर्थ है। |
तुकाराम |
#64 |
असीम आवश्यकता नहीं, तृष्णा होती है। |
जैनेंद्र |
#65 |
आविष्कार से आविष्कार का जन्म होता है। |
एमर्सन |
#66 |
आशा और आत्मविश्वास ही वे वस्तुएँ हैं |
स्वेट मार्डेन |
#67 |
प्रयत्नशील मनुष्य के लिए सदा आशा है। |
गेटे |
#68 |
आसक्ति विषयों के प्रति |
भारवि |
#69 |
सप्ताह का विचार |
(पुरालेख) |
#70 |
सारा जगत स्वतंत्रता के लिए लालायित |
श्री अरविंद |
#71 |
सत्याग्रह की लड़ाई हमेशा दो प्रकार की |
सरदार पटेल |
#72 |
कष्ट ही तो वह प्रेरक शक्ति है जो |
सावरकर |
#73 |
तप ही परम कल्याण का साधन है। दूसरे |
वाल्मीकि |
#74 |
संयम संस्कृति का मूल है। विलासिता |
काका कालेलकर |
#75 |
जो सत्य विषय हैं वे तो सबमें एक से |
सत्यार्थप्रकाश |
#76 |
जिस तरह एक दीपक पूरे घर का अंधेरा दूर |
कहावत |
#77 |
सही स्थान पर बोया गया सुकर्म का बीज |
कथा सरित्सागर |
#78 |
चाहे गुरु पर हो या ईश्वर पर, श्रद्धा अवश्य रखनी |
समर्थ रामदास |
#79 |
यदि असंतोष की भावना को लगन व धैर्य से |
इंदिरा गांधी |
#80 |
प्रजा के सुख में ही राजा का सुख और |
चाणक्य |
#81 |
द्वेष बुद्धि को हम द्वेष से नहीं मिटा |
विनोबा |
#82 |
साहित्य का कर्तव्य केवल ज्ञान देना |
डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन |
#83 |
लोकतंत्र के पौधे का, चाहे वह किसी भी |
जयप्रकाश नारायण |
#84 |
बाधाएँ व्यक्ति की परीक्षा होती हैं। |
यशपाल |
#85 |
सहिष्णुता और समझदारी संसदीय लोकतंत्र |
डॉ. शंकर दयाल शर्मा |
#86 |
जिस प्रकार रात्रि का अंधकार केवल |
नारदभक्ति |
#87 |
धर्म करते हुए मर जाना अच्छा है पर पाप |
महाभारत |
#88 |
दंड द्वारा प्रजा की रक्षा करनी चाहिए |
रामायण |
#89 |
शाश्वत शांति की प्राप्ति के लिए शांति |
स्वामी ज्ञानानंद |
#90 |
धर्म का अर्थ तोड़ना नहीं बल्कि जोड़ना |
डॉ. शंकरदयाल शर्मा |
#91 |
त्योहार साल की गति के पड़ाव हैं, जहाँ भिन्न-भिन्न |
बरुआ |
#92 |
दुखियारों को हमदर्दी के आँसू भी कम |
प्रेमचंद |
#93 |
अधिक हर्ष और अधिक उन्नति के बाद ही |
जयशंकर प्रसाद |
#94 |
अध्यापक राष्ट्र की संस्कृति के चतुर |
महर्षि अरविंद |
#95 |
जंज़ीरें, जंज़ीरें ही हैं, चाहे वे लोहे की हों |
स्वामी रामतीर्थ |
#96 |
जैसे अंधे के लिए जगत अंधकारमय है और |
संपूर्णानंद |
#97 |
नम्रता और मीठे वचन ही मनुष्य के आभूषण |
संत तिरुवल्लुर |
#98 |
वही उन्नति करता है जो स्वयं अपने को |
स्वामी रामतीर्थ |
#99 |
अपने विषय में कुछ कहना प्राय: बहुत |
महादेवी वर्मा |
#100 |
करुणा में शीतल अग्नि होती है जो क्रूर |
सुदर्शन |
#101 |
हताश न होना ही सफलता का मूल है और यही |
वाल्मीकि |
#102 |
मित्रों का उपहास करना उनके पावन प्रेम |
राम प्रताप त्रिपाठी |
#103 |
नेकी से विमुख हो जाना और बदी करना |
संत तिरुवल्लुवर |
#104 |
जय उसी की होती है जो अपने को संकट में |
जवाहरलाल नेहरू |
#105 |
कवि और चित्रकार में भेद है। कवि अपने |
डॉ. रामकुमार वर्मा |
#106 |
जीवन का महत्व तभी है जब वह किसी महान |
इंदिरा गांधी |
#107 |
तलवार ही सब कुछ है, उसके बिना न मनुष्य |
गुरु गोविंद सिंह |
#108 |
मनुष्य क्रोध को प्रेम से, पाप को सदाचार से |
गौतम बुद्ध |
#109 |
स्वतंत्रता हमारा जन्म सिद्ध अधिकार |
लोकमान्य तिलक |
#110 |
सच्चे साहित्य का निर्माण एकांत चिंतन |
अनंत गोपाल शेवडे |
#111 |
कुटिल लोगों के प्रति सरल व्यवहार |
श्री हर्ष |
#112 |
अनुभव, ज्ञान उन्मेष और |
हरिऔध |
#113 |
जो अपने ऊपर विजय प्राप्त करता है वही |
गौतम बुद्ध |
#114 |
अधिक अनुभव, अधिक सहनशीलता और |
अज्ञात |
#115 |
जो दीपक को अपने पीछे रखते हैं वे अपने |
रवींद्र |
#116 |
जहाँ प्रकाश रहता है वहाँ अंधकार कभी |
माघ्र |
#117 |
मनुष्य का जीवन एक महानदी की भाँति है |
रवींद्रनाथ ठाकुर |
#118 |
प्रत्येक बालक यह संदेश लेकर आता है कि |
रवींद्रनाथ ठाकुर |
#119 |
कविता का बाना पहन कर सत्य और भी चमक |
अज्ञात |
#120 |
हताश न होना सफलता का मूल है और यही |
वाल्मीकि |
#121 |
अनुराग, यौवन, रूप या धन से |
प्रेमचंद |
#122 |
जैसे जल द्वारा अग्नि को शांत किया |
वेदव्यास |
#123 |
फल के आने से वृक्ष झुक जाते हैं, वर्षा के समय बादल |
तुलसीदास |
#124 |
प्रकृति, समय और धैर्य ये तीन |
अज्ञात |
#125 |
कष्ट और विपत्ति मनुष्य को शिक्षा देने |
लोकमान्य तिलक |
#126 |
कविता गाकर रिझाने के लिए नहीं समझ कर |
रामधारी सिंह दिनकर |
#127 |
विद्वत्ता अच्छे दिनों में आभूषण, विपत्ति में सहायक |
हितोपदेश |
#128 |
ख़ातिरदारी जैसी चीज़ में मिठास ज़रूर |
शरतचंद्र |
#129 |
पुष्प की सुगंध वायु के विपरीत कभी |
गौतम बुद्ध |
#130 |
कलाकार प्रकृति का प्रेमी है अत: वह |
रवींद्रनाथ ठाकुर |
#131 |
रंग में वह जादू है जो रंगने वाले, भीगने वाले और देखने |
मुक्ता |
#132 |
जो भारी कोलाहल में भी संगीत को सुन |
डॉ. विक्रम साराभाई |
#133 |
मनुष्य जितना ज्ञान में घुल गया हो |
विनोबा |
#134 |
लगन और योग्यता एक साथ मिलें तो निश्चय |
मुक्ता |
#135 |
बिना कारण कलह कर बैठना मूर्ख का लक्षण |
हितोपदेश |
#136 |
मुस्कान पाने वाला मालामाल हो जाता है |
अज्ञात |
#137 |
आलस्य मनुष्य का सबसे बड़ा शत्रु है और |
भर्तृहरि |
#138 |
क्रोध ऐसी आँधी है जो विवेक को नष्ट कर |
अज्ञात |
#139 |
चंद्रमा अपना प्रकाश संपूर्ण आकाश में |
रवींद्र |
#140 |
आपत्तियाँ मनुष्यता की कसौटी हैं। इन |
पं. रामप्रताप त्रिपाठी |
#141 |
मेहनत करने से दरिद्रता नहीं रहती, धर्म करने से पाप |
चाणक्य |
#142 |
जल में मीन का मौन है, पृथ्वी पर पशुओं का |
रवींद्रनाथ ठाकुर |
#143 |
कविता वह सुरंग है जिसमें से गुज़र कर |
रामधारी सिंह दिनकर |
#144 |
चरित्रहीन शिक्षा, मानवता विहीन |
सत्यसाई बाबा |
#145 |
भाग्य के भरोसे बैठे रहने पर भाग्य |
अज्ञात |
#146 |
ग़रीबों के समान विनम्र अमीर और अमीरों |
सादी |
#147 |
जिस प्रकार मैले दर्पण में सूरज का |
रामकृष्ण परमहंस |
#148 |
मिलने पर मित्र का आदर करो, पीठ पीछे प्रशंसा |
अज्ञात |
#149 |
जैसे छोटा-सा तिनका हवा का रुख बताता |
महात्मा गांधी |
#150 |
साँप के दाँत में विष रहता है, मक्खी के सिर में और |
कबीर |
#151 |
देश-प्रेम के दो शब्दों के सामंजस्य |
बलभद्र प्रसाद गुप्त ‘रसिक‘ |
#152 |
सर्वसाधारण जनता की उपेक्षा एक बड़ा |
स्वामी विवेकानंद |
#153 |
दरिद्र व्यक्ति कुछ वस्तुएँ चाहता है, विलासी बहुत-सी और |
अज्ञात |
#154 |
भय से ही दुःख आते हैं, भय से ही मृत्यु |
विवेकानंद |
#155 |
निराशा के समान दूसरा पाप नहीं। आशा |
रश्मिमाला |
#156 |
विश्वास हृदय की वह कलम है जो स्वर्गीय |
अज्ञात |
#157 |
नाव जल में रहे लेकिन जल नाव में नहीं |
रामकृष्ण परमहंस |
#158 |
जिस राष्ट्र में चरित्रशीलता नहीं है |
विनोबा |
#159 |
उदार मन वाले विभिन्न धर्मों में सत्य |
चीनी कहावत |
#160 |
वे ही विजयी हो सकते हैं जिनमें |
अज्ञात |
#161 |
जीवन की जड़ संयम की भूमि में जितनी |
दीनानाथ दिनेश |
#162 |
जहाँ मूर्ख नहीं पूजे जाते, जहाँ अन्न की |
अथर्ववेद |
#163 |
उड़ने की अपेक्षा जब हम झुकते हैं तब |
अज्ञात |
#164 |
जीवन में कोई चीज़ इतनी हानिकारक और |
सुभाषचंद्र बोस |
#165 |
विवेक जीवन का नमक है और कल्पना उसकी |
अज्ञात |
#166 |
आपका कोई भी काम महत्वहीन हो सकता है |
महात्मा गांधी |
#167 |
पाषाण के भीतर भी मधुर स्रोत होते हैं, उसमें मदिरा नहीं |
जयशंकर प्रसाद |
#168 |
आँख के अंधे को दुनिया नहीं दिखती, काम के अंधे को |
चाणक्य |
#169 |
एकता का किला सबसे सुरक्षित होता है। न |
अज्ञात |
#170 |
किताबें ऐसी शिक्षक हैं जो बिना कष्ट |
अज्ञात |
#171 |
ऐसे देश को छोड़ देना चाहिए जहाँ न आदर |
विनोबा |
#172 |
विश्वास वह पक्षी है जो प्रभात के |
रवींद्रनाथ ठाकुर |
#173 |
कुल की प्रतिष्ठा भी विनम्रता और |
प्रेमचंद |
#174 |
अनुभव की पाठशाला में जो पाठ सीखे जाते |
अज्ञात |
#175 |
जिस प्रकार थोड़ी-सी वायु से आग भड़क |
अज्ञात |
#176 |
अपने को संकट में डाल कर कार्य संपन्न |
जवाहरलाल नेहरू |
#177 |
सच्चाई से जिसका मन भरा है, वह विद्वान न होने |
पं. मोतीलाल नेहरू |
#178 |
स्वतंत्र वही हो सकता है जो अपना काम |
विनोबा |
#179 |
जिस तरह रंग सादगी को निखार देते हैं |
मुक्ता |
#180 |
दुख और वेदना के अथाह सागर वाले इस |
डॉ. रामकुमार वर्मा |
#181 |
डूबते को तारना ही अच्छे इंसान का |
अज्ञात |
#182 |
सबसे अधिक ज्ञानी वही है जो अपनी |
अज्ञात |
#183 |
अनुभव-प्राप्ति के लिए काफ़ी मूल्य |
अज्ञात |
#184 |
जिसने अकेले रह कर अकेलेपन को जीता |
अज्ञात |
#185 |
अच्छी योजना बनाना बुद्धिमानी का काम |
कहावत |
#186 |
जो पुरुषार्थ नहीं करते उन्हें धन, मित्र, ऐश्वर्य, सुख, स्वास्थ्य, शांति और संतोष |
वेदव्यास |
#187 |
नियम के बिना और अभिमान के साथ किया |
वेदव्यास |
#188 |
जैसे सूर्योदय के होते ही अंधकार दूर |
अमृतलाल नागर |
#189 |
जैसे उल्लू को सूर्य नहीं दिखाई देता |
स्वामी भजनानंद |
#190 |
लोहा गरम भले ही हो जाए पर हथौड़ा तो |
सरदार पटेल |
#191 |
एकता का किला सबसे सुदृढ़ होता है। |
अज्ञात |
#192 |
फूल चुन कर एकत्र करने के लिए मत ठहरो। |
रवींद्रनाथ ठाकुर |
#193 |
सौभाग्य वीर से डरता है और कायर को |
अज्ञात |
#194 |
प्रकृति अपरिमित ज्ञान का भंडार है, परंतु उससे लाभ |
हरिऔध |
#195 |
प्रकृति अपरिमित ज्ञान का भंडार है, पत्ते-पत्ते में |
हरिऔध |
#196 |
जिस मनुष्य में आत्मविश्वास नहीं है वह |
राम प्रताप त्रिपाठी |
#197 |
मन एक भीरु शत्रु है जो सदैव पीठ के |
प्रेमचंद |
#198 |
असत्य फूस के ढेर की तरह है। सत्य की |
हरिभाऊ उपाध्याय |
#199 |
समय परिवर्तन का धन है। परंतु घड़ी उसे |
रवींद्रनाथ ठाकुर |
#200 |
संतोष का वृक्ष कड़वा है लेकिन इस पर |
स्वामी शिवानंद |
#201 |
विचारकों को जो चीज़ आज स्पष्ट दीखती |
विनोबा |
#202 |
विश्वविद्यालय महापुरुषों के निर्माण |
रवींद्र |
#203 |
हज़ार योद्धाओं पर विजय पाना आसान है, लेकिन जो अपने ऊपर |
गौतम बुद्ध |
#204 |
जबतक भारत का राजकाज अपनी भाषा में |
मोरारजी देसाई |
#205 |
मुठ्ठी भर संकल्पवान लोग जिनकी अपने |
महात्मा गांधी |
#206 |
सत्याग्रह बलप्रयोग के विपरीत होता है। |
महात्मा गांधी |
#207 |
दूसरों पर किए गए व्यंग्य पर हम हँसते |
रामचंद्र शुक्ल |
#208 |
धन उत्तम कर्मों से उत्पन्न होता है, प्रगल्भता (साहस, योग्यता व दृढ़ |
विदुर |
#209 |
वाणी चाँदी है, मौन सोना है, वाणी पार्थिव है पर |
कहावत |
#210 |
मुहब्बत त्याग की माँ है। वह जहाँ जाती |
सुदर्शन |
#211 |
मुस्कान थके हुए के लिए विश्राम है, उदास के लिए दिन का |
अज्ञात |
#212 |
जिस तरह घोंसला सोती हुई चिड़िया को |
रवींद्रनाथ ठाकुर |
#213 |
साफ़ सुथरे सादे परिधान में ऐसा यौवन |
अज्ञात |
#214 |
ज्ञानी जन विवेक से सीखते हैं, साधारण मनुष्य अनुभव |
कौटिल्य |
#215 |
जो काम घड़ों जल से नहीं होता उसे दवा |
सुदर्शन |
|
|
|
|
सप्ताह का विचार |
(पुरालेख) |
|
|
|
#216 |
जिस काम की तुम कल्पना करते हो उसमें |
अज्ञात |
#217 |
मनुष्य मन की शक्तियों के बादशाह हैं। |
अज्ञात |
#218 |
सबसे उत्तम विजय प्रेम की है। जो सदैव |
सम्राट अशोक |
#219 |
महान व्यक्ति महत्वाकांक्षा के प्रेम |
प्रेमचंद |
#220 |
बिना जोश के आज तक कोई भी महान कार्य |
सुभाष चंद्र बोस |
#221 |
नेकी से विमुख हो बदी करना निस्संदेह |
संत तिरुवल्लुवर |
#222 |
अधर्म की सेना का सेनापति झूठ है। जहाँ |
सुदर्शन |
#223 |
पृथ्वी पर तीन रत्न हैं। जल, अन्न और सुभाषित |
कालिदास |
#224 |
जैसे जीने के लिए मृत्यु का अस्वीकरण |
डॉ. रघुवंश |
#225 |
ईश्वर बड़े-बड़े साम्राज्यों से ऊब |
रवींद्रनाथ ठाकुर |
#226 |
सबसे उत्तम विजय प्रेम की है जो सदैव |
अशोक |
#227 |
जीवन में दो ही व्यक्ति असफल होते हैं- |
आचार्य श्रीराम शर्मा |
#228 |
कर्म, ज्ञान और भक्ति- ये |
अरविंद |
#229 |
उत्तम पुरुषों की संपत्ति का मुख्य |
रहीम |
#230 |
विद्वत्ता युवकों को संयमी बनाती है। |
|
#231 |
मनस्वी पुरुष पर्वत के समान ऊँचे और |
माघ |
#232 |
सपने हमेशा सच नहीं होते पर ज़िंदगी तो |
रविकिरण शास्त्री |
#233 |
अकेलापन कई बार अपने आप से सार्थक |
राजेंद्र अवस्थी |
#234 |
विश्व के निर्माण में जिसने सबसे अधिक |
हर्ष मोहन |
#235 |
पुरुष है कुतूहल व प्रश्न और स्त्री है |
जयशंकर प्रसाद |
#236 |
जो मनुष्य एक पाठशाला खोलता है वह एक |
अज्ञात |
#237 |
यशस्वियों का कर्तव्य है कि जो अपने से |
कालिदास |
#238 |
कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं |
हरिवंश राय बच्चन |
#239 |
जब पैसा बोलता है तब सत्य मौन रहता है। |
कहावत |
#240 |
मनुष्य अपना स्वामी नहीं, परिस्थितियों का दास |
भगवतीचरण वर्मा |
#241 |
उदय होते समय सूर्य लाल होता है और |
कालिदास |
#242 |
वृक्ष अपने सिर पर गरमी सहता है पर |
तुलसीदास |
#243 |
प्रत्येक कार्य अपने समय से होता है |
वृंद |
#244 |
चापलूसी का ज़हरीला प्याला आपको तब तक |
प्रेमचंद |
#245 |
दुनिया का अस्तित्व शस्त्रबल पर नहीं, सत्य, दया और आत्मबल पर |
महात्मा गांधी |
#246 |
संपदा को जोड़-जोड़ कर रखने वाले को |
आचार्य श्रीराम शर्मा |
#247 |
मानव का मानव होना ही उसकी जीत है, दानव होना हार है, और महामानव होना |
डॉ. राधाकृष्णन |
#248 |
केवल अंग्रेज़ी सीखने में जितना श्रम |
विनोबा |
#249 |
अवसर तो सभी को ज़िंदगी में मिलते हैं |
संतोष गोयल |
#250 |
विजय गर्व और प्रतिष्ठा के साथ आती है |
मुक्ता |
#251 |
धैर्यवान मनुष्य आत्मविश्वास की नौका |
भर्तृहरि |
#252 |
केवल प्रकाश का अभाव ही अंधकार नहीं, प्रकाश की अति भी |
स्वामी रामतीर्थ |
#253 |
कलियुग में रहना है या सतयुग में यह |
विनोबा |
#254 |
प्रलय होने पर समुद्र भी अपनी मर्यादा |
चाणक्य |
#255 |
भूख प्यास से जितने लोगों की मृत्यु |
कहावत |
#256 |
बच्चे कोरे कपड़े की तरह होते हैं, जैसा चाहो वैसा रंग |
सत्यसाई बाबा |
#257 |
धन तो वापस किया जा सकता है परंतु |
सुदर्शन |
#258 |
शत्रु के साथ मृदुता का व्यवहार |
रामनरेश त्रिपाठी |
#259 |
श्रद्धा और विश्वास ऐसी जड़ी बूटियाँ |
अमृतलाल नागर |
#260 |
जैसे रात्रि के बाद भोर का आना या दुख |
भावना कुँअर |
#261 |
धन के भी पर होते हैं। कभी-कभी वे |
कहावत |
#262 |
प्रसिद्ध होने का यह एक दंड है कि |
अज्ञात |
#263 |
प्रत्येक व्यक्ति की अच्छाई ही |
राजगोपालाचारी |
#264 |
अपने अनुभव का साहित्य किसी दर्शन के |
कमलेश्वर |
#265 |
मैं ने कोई विज्ञापन ऐसा नहीं देखा |
हरिशंकर परसाई |
#266 |
‘शि‘ का अर्थ है पापों का |
ब्रह्मवैवर्त पुराण |
#267 |
काम की समाप्ति संतोषप्रद हो तो |
कालिदास |
#268 |
रंगों की उमंग खुशी तभी देती है जब |
मुक्ता |
#269 |
नारी की करुणा अंतरजगत का उच्चतम विकास |
जयशंकर प्रसाद |
#270 |
चंद्रमा, हिमालय पर्वत, केले के वृक्ष और |
वशिष्ठ |
#271 |
इस संसार में प्यार करने लायक दो |
आचार्य श्रीराम शर्मा |
#272 |
बैर क्रोध का अचार या मुरब्बा है। |
आचार्य रामचंद्र शुक्ल |
#273 |
संवेदनशीलता न्याय की पहली अनिवार्यता |
कुमार आशीष |
#274 |
शब्द पत्तियों की तरह हैं जब वे |
अज्ञात |
#275 |
अपने दोस्त के लिए जान दे देना इतना |
मधूलिका गुप्ता |
#276 |
जिस साहित्य से हमारी सुरुचि न जागे, आध्यात्मिक और |
प्रेमचंद |
#277 |
आकाश में उड़ने वाले पंछी को भी अपने |
प्रेमचंद |
#278 |
किताबें समय के महासागर में जलदीप की |
अज्ञात |
#279 |
देश कभी चोर उचक्कों की करतूतों से |
शिव खेड़ा |
#280 |
बीस वर्ष की आयु में व्यक्ति का जो |
अष्टावक्र |
#281 |
यह सच है कि पानी में तैरनेवाले ही |
वल्लभ भाई पटेल |
#282 |
ऐ अमलतास किसी को भी पता न चला तेरे कद |
मधूलिका गुप्ता |
#283 |
बेहतर ज़िंदगी का रास्ता बेहतर किताबों |
शिल्पायन |
#284 |
दस गरीब आदमी एक कंबल में आराम से सो |
मधूलिका गुप्ता |
#285 |
राष्ट्र की एकता को अगर बनाकर रखा जा |
सुब्रह्मण्यम भारती |
#286 |
मानव हृदय में घृणा, लोभ और द्वेष वह |
सत्य साईं बाबा |
#287 |
बिखरना विनाश का पथ है तो सिमटना |
कन्हैयालाल मिश्र प्रभाकर |
#288 |
समझौता एक अच्छा छाता भले बन सकता है, लेकिन अच्छी छत |
मधूलिका गुप्ता |
#289 |
सज्जन पुरुष बादलों के समान देने के |
कालिदास |
#290 |
सतत परिश्रम, सुकर्म और निरंतर |
मुक्ता |
#291 |
दुख को दूर करने की एक ही अमोघ ओषधि |
वेदव्यास |
#292 |
बिना ग्रंथ के ईश्वर मौन है, न्याय निद्रित है, विज्ञान स्तब्ध है |
अज्ञात |
#293 |
पराजय से सत्याग्रही को निराशा नहीं |
महात्मा गांधी |
#294 |
अंग्रेज़ी माध्यम भारतीय शिक्षा में |
महामना मदनमोहन मालवीय |
#295 |
हँसमुख व्यक्ति वह फुहार है जिसके |
अज्ञात |
#296 |
मुट्ठी भर संकल्पवान लोग जिनकी अपने |
महात्मा गांधी |
#297 |
रामायण समस्त मनुष्य जाति को |
मदनमोहन मालवीय |
#298 |
उजाला एक विश्वास है जो अँधेरे के किसी |
डॉ. प्रेम जनमेजय |
#299 |
वही पुत्र हैं जो पितृ-भक्त है, वही पिता हैं जो ठीक |
चाणक्य |
#300 |
हिंदी ही हिंदुस्तान को एक सूत्र में |
शास्त्री फ़िलिप |
#301 |
यह सच है कि कवि सौंदर्य को देखता है। |
रामनरेश त्रिपाठी |
#302 |
अत्याचार और अनाचार को सिर झुकाकर वे |
कमलापति त्रिपाठी |
#303 |
समय और बुद्धि बड़े से बड़े शोक को भी |
कहावत |
#304 |
स्वयं प्रकाशित दीप भी प्रकाश के लिए |
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