Home Pauranik Katha शिशुपाल की मृत्यु का रहस्य-Shishupal Ka Vadh

शिशुपाल की मृत्यु का रहस्य-Shishupal Ka Vadh

13 second read
0
0
312
Shishupal ki mirtyu ka
शिशुपाल की मृत्यु का रहस्य

Shishupal Ka Vadh :- भीष्म जी बोले- भीमसेन! सुनो, चेदिराज दमघोष के कुल में जब यह शिशुपाल उत्पन्न हुआ, उस समय इसके तीन आँखें और चार भुजाएँ थीं। इसने रोने की जगह गदहे के रेंकने की भाँति शब्द किया और जोर जोर से गर्जना भी की। इससे इसके माता-पिता अन्य भाई बन्धुओं सहित भय से थर्रा उठे। इसकी वह विकराल आकृति देख उन्होंने इसे त्याग देने का निश्चिय किया। पत्नी, पुरोहित तथा मन्त्रियों सहित चेदिराज का हृदय चिन्ता से मोहित हो रहा था। उस समय आकाशवाणी हुई- ‘राजन्! तुम्हारा यह पुत्र श्रीसम्पन्न और महाबली है, अत: तुम्हें इससे डरना नहीं चाहिये। तुम शान्तचित्त होकर इस शिशु का पालन करो। नरेश्वर! अभी इसकी मृत्यु नहीं आयी है और न काल ही उपस्थित हुआ है। जो इसकी मृत्यु का कारण है तथा जो शस्त्र द्वारा इसका वध करेगा, वह अन्यत्र उत्पन्न हो चुका है’।
Shishupal Ka Vadh
Shishupal Ka Vadh

तदनन्तर यह आकाशवाणी सुनकर उस अन्तर्हित भूत को लक्ष्य करके पुत्रस्नेह से संतप्त हुई इसकी माता बोली- ‘मेरे इस पुत्र के विषय में जिन्होंने यह बात कही है, उन्हें मैं हाथ जोड़कर प्रणाम करती हूँ। चाहे वे कोई देवता हों अथवा और कोई प्राणी? वे फिर मेरे प्रश्न का उत्तर दें। मैं यह यथार्थ रूप से सुनना चाहती हूँ कि मेरे इस पुत्र की मृत्यु में कौन निमित्त बनेगा?’ तब पुन: उसी अदृश्य भूत ने यह उत्तर दिया- ‘जिसके द्वारा गोद में लिये जाने पर पांच सिर वाले दो सर्पों की भाँति इसकी पाँचों अँगुलियों से युक्त दो अधिक भुजाएँ पृथ्वी पर गिर जायँगी और जिसे देखकर इस बालक का ललाटवर्ती तीसरा नेत्र भी ललाट में लीन हो जायगा, वही इसकी मृत्यु में निमित्त बनेगा’। चार बाँह और तीन आँख वाले बालक के जन्म का समाचार सुनकर भूण्डल के सभी नरेश उसे देखने के लिये आये। चेदिराज ने अपने घर पधारे हुए उन सभी नरेशों का यथायोग्य सत्कार करके अपने पुत्र को हर एक की गोद में रखा।

इस प्रकार वह शिशु क्रमश: सहस्रों राजाओं की गोद में अलग-अलग रखा गया, परंतु मृत्युसूचक लक्षण कहीं प्राप्त नहीं हुआ। द्वारका में यही समाचार सुनकर महाबली बलराम और श्रीकृष्ण दोनों यदुवंशी वीर अपनी बुआ से मिलने के लिये उस समय चेदिराज्य की राजधानी में गये। वहाँ बलराम और श्रीकृष्ण ने बड़े-छोटे के क्रम से सबको यथायोग्य प्रणाम किया एवं राजा दमघोष और अपनी बुआ श्रुतश्रवा से कुशल और आरोग्य विषयक प्रश्न किया। तत्पश्चात दोनों भाई एक उत्तम आसन पर विराजमान हुए। महादेवी श्रुतश्रवा ने बड़े प्रेम से उन दोनों वीरों का सत्कार किया और स्वयं ही अपने पुत्र को श्रीकृष्ण की गोद में डाल दिया। उनकी गोद में रखते ही बालक की वे दोनों बाँहें गिर गयीं और ललाटवर्ती नेत्र भी वहीं विलीन हो गया। यह देखकर बालक की माता भयभीत हो मन ही मन व्यथित हो गयी और श्रीकृष्ण से वर माँगती हुई बोली- ‘महाबाहु श्रीकृष्ण! मैं भय से व्याकुल हो रही हूँ। मुझे इस पुत्र की जीवन रक्षा के लिये कोई वर दो। क्योंकि तुम संकट में पड़े हुए प्राणियों के सबसे बड़े सहारे और भयभीत मनुष्यों को अभय देने वाले हो ।

अपनी बुआ के ऐसा कहने पर यदुनन्दन श्रीकृष्ण ने कहा- ‘देवी! धर्मज्ञे! तुम डरो मत। तुम्हें मुझसे कोई भय नहीं है। बुआ! तुम्हीं कहो, मैं तुम्हें कौन-सा वर दूँ? तुम्हारा कौन सा कार्य सिद्ध कर दूँ? सम्भव हो या असम्भव, तुम्हारे वचन का मैं अवश्य पालन करूँगा।’ इस प्रकार आश्वासन मिलने पर श्रुतश्रवा यदुनन्दन श्रीकृष्ण से बोली- ‘महाबली यदुकुलतिलक श्रीकृष्ण! तुम मेरे लिये शिशुपाल के सब अपराध क्षमा कर देना। प्रभो! यही मेरा मनोवांछित वर समझो’। श्रीकृष्ण ने कहा- बुआ! तुम्हारा पुत्र अपने दोषों के कारण मेरे द्वारा यदि वध के योग्य होगा, तो भी मैं इसके सौ अपराध क्षमा करूँगा। तुम अपने मन में शोक न करो। भीष्म जी कहते हैं- वीरवर भीमसेन! इस प्रकार यह मन्दबुद्धि पापी राजा शिशुपाल भगवान श्रीकृष्ण के दिये हुए वरदान से उन्मत्त होकर तुम्हें युद्ध के लिये ललकार रहा है।

Load More Related Articles
Load More By amitgupta
Load More In Pauranik Katha

Leave a Reply

Check Also

What is Account Master & How to Create Modify and Delete

What is Account Master & How to Create Modify and Delete Administration > Masters &…