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आया था कुछ नफे को,तने खो दिया मुक्ता माल – aayaa thaa kuchh naphe ko Kabir ji Ke Dohe.

kabir ke dohe arth sahit
Kabir Ke Dohe

कबीर के  दोहे

दोहा-आया था कुछ नफे को,तने खो दिया मुक्ता माल।
मूल ब्याज में दे चला,तने भजा ना दीन दयाल।।

आया था नफा कमावन,टोटा गेर लिया रे।
पिछली पूंजी घटती जा रही, आगे करता ना तयारी।
एक दिन या चुक लेगी सारी, तोसा सेर लिया रे।।

सूत नारी का मौह करे सै, तब तो मुर्ख विपत भरे सै।
निष् दिन चिंता बीच जले सै, झगड़ा छेड़ लिया रे।।

हरि के जाना होगा स्याहमी, मतना शीश धरे बदनामी।
तूँ असली नमक हरामी, मुखड़ा फेर लिया रे।।

धर्म ने छड़ करे मत चाला, तेरा ममता ने कर दिया गाला।
अहंकार नाग है काला, तूँ तो घेर लिया रे।।

हरि स्वरूप कथन है चन्दन, समझे उस के काटे बन्धन।
सनातन धर्म जगत का नंदन, कई बर टेर लिया रे।।
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