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ससुराल ( भजन) – हिन्दुओ के व्रत और त्योहार

ससुराल 

हरी हरी चूडियाँ रतन पोंचिया जो राम चले ससुराज जी। राम जी ….
जा उतरे गंगा किनारे तो, जादू ने चरण पखारे जी। राम जी । चरण पखार चरणामृत लेना तो, धन-धन भाग हमारे जी ।
ऊँगा का दातन गंगाजल झारी तो, जादू न दातन दिवाबो जी। ताता सा पानी तेल उबटना तो जादू न मसल उबट नुहावो जी।
पाट पीताम्बर रेशम की धोती तो, जादू न वस्त्र पहनाओ जी। राम जी घिस-घिस चंदन भरी है कटोरी तो, जादू न तिलक लगाओ जी।
राम जी मोतीचूर मगध के लडडू तो, जादू न भोग लगाओ जी।
राम जी आक-ढाक की पत्तल मंगवा लो, जादू न पत्तल दिवाबो जी। राम जी…..
दाल भात गींवा का फुलका तो, परवल की तरकारी जी। राम जी पांच रुपया ध्वजा ए नारियल तो, जादू न भेंट चढ़ावों जी। राम जी …..
सास सपूती ने थाल परोसा तो जीमो ना रतन जमाई जी। चारों भाई जीमन बैठे तो, साली दे रही गाली जी। राम जी…
काला की काला कृष्ण मुरारी तो, दो बापन का जाया जी। राम जी…
हम तो हें तीनों लोकों के ठाकुर तो, काँए को आए ससुराल जी।
फटी धरम की बेटा तो, राम विदा होय आये, जी। राम जी …
क्या कोई आया नरी का राजा तो, क्‍या न कोई आई है बराता जी।
दशरथ पुत्र कोशल्या का जाया तो, राम विदा होय आया जी। राम जी …
गुडले पे बैठी माता कौशल्या तो, कैसी की पाई ससुराल जी।
ससुर हमारे इन्द्र वरुण हैं तो, सासू गंगा जल झारी जी। साले हमारे चाँद-सूरज हैं तो, साली है कामणॅ गारी जी माता।
जैसो ही अग्नि में सोना तपत है तो वैसी है कामनी हमारी जी। राम जी …
नौ-दस मास गर्भ रखा तो, कभी न करी बड़ाई जी। राम जी ….
एक रात रहा ससुराल तो सास की करी हे बड़ाई जी। राम जी …
सौगन्ध खाऊँ मैं तो नन्‍्द बाबा की, तो कभी न जाऊँ ससुराल जी।
धन्य-धन्य रे बेटा तेरी ससुराल गावे तो, नित आओ नित जाओ जी। राम जी ….
जो कोई राम की ससुराल गावे तो, जन्म-मरण छूट जावे जी। राम जी….
वाली गावे घर वर पावे, तो तरुनी पुत्र खिलावे जी। राम जी ….
बूढ़ी गावे गंगा जमुना नहावे तो, स्वर्ग पालकी आवे जी। राम जी….
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