साँझी
यह त्योहार आश्विन लगते ही पूर्णमासी से अमावस्या तक मनाये जाने की प्रथा है। कुंवारी लड़कियां घरों में सांझी का पूजन करती हैं। दीवार पर गोबर के सांझा सांझी की मूर्ति बनाकर उनको भोग लगाते हैं। पंद्रहवे दिन अमावस्या को गोबर से विशाल कोट बनाकर पूजा की जाती हे। जिस दिन लड़की की शादी हो जाये। तो वह शादी के वर्ष में ही 16 कोटों की 16 घर जाकर पूजा करे, भोग लगाये। इससे लड़कियों को सभी मनोकामना पूरी होती है।
साँझी का गीत
साझा बाल बनरा को चाले रे बनरा टेसुरा
बनरी कू क्या क्या लाये रे। बनरा टेसुरा
माया कू हंसला, बहिन कू तो कठला, तो
गोरी धन कारी कंठी लाये रे। बनरा टेसुरा
माया वाकी हँसे, बहिन वाकी खिलके, तो
गोरी धन रूठी मटकी डोले रे। बनरा टेसुरा
माया पैसे छीनो बहिन पैसे झपटी तो
गोरी धन ले पहरायो रे। बनरा टेसुरा
माया वाकी रोवे बहिन वाकी सुबके, तो
गोरी धन फूली न समाये रे। बनरा टेसुरा