पश्चात्ताप का परिणाम
इस कलड्ड की जड़ आप हैं, पुरोहित। आपने रथ का वेग बढ़ाकर घोर पाप कर डाला। महाराज थरथर कॉपने लगे।
दिग्विजय का श्रेय आपने लिया तो यह ब्रह्म हत्या भी आपके ही सिर पर मढ़ी जायगी। पुरोहित वृशजान के शब्दों से महाराज तिलमिला उठे। दोनों में अनबन हो गयी। श्रयरुण ने उनके कथन की अवज्ञा की।
पुरोहित वृशजान के चले जाने पर महाराज त्र्यरुण पश्चात्ताप की आग में जलने लगे।
मेरी समझमें आ गया मित्र! राज्य में अग्रि-तेज घटने का कारण वृशजान ने यज्ञ-कुण्ड में घी की आहुति देते हुए त्र्यरुण की उत्सुकता बढ़ायी। महाराज आश्चर्यचकित थे। यह है।” वृशजान ने श्रयरुण की रानी-पिशाची को कपिश-गद्दे के आसन पर बैठने का आदेश दिया। वेदमन्त्र से अग्रि का आवाहन करते ही पिशाची स्वाहा हो गयी।
यह ब्रह्महत्या थी महाराज ! रानी के वेष में राजप्रासाद में प्रवेश कर इसने राज्यश्री का अपहरण कर लिया था।! वृशजान ने रहस्य का उद्घाटन किया। यज्ञ-कुण्ड की होम-ज्वाला से चारों ओर प्रकाश छा गया। श्रयरुण ने वृशजान का आलिड्रनन किया। प्रजा ने दोनों की जय मनायी। चारों ओर आनन्द बरसने लगा।