ईमानदार व्यापारी
महातपस्वी ब्राह्मण जाजलि ने दीर्घ काल तक श्रद्धा एवं नियमपूर्वक वानप्रस्था श्रम धर्म का पालन किया था। अब वे केवल वायु पीकर निश्चल खड़े हो गये थे और कठोर तपस्या कर रहे थे। उन्हें गतिहीन देखकर पक्षियों ने कोई वृक्ष समझ लिया और उनकी जटाओं में घोंसले बनाकर वहीं अंडे दे दिये।