मंगसिर मास की शुक्ल पंचमी पर राम विवाह
श्रीगणेश मनाय के शाखा करूँ बखान। वर कन्या चिरंजीव हो कृपा करें भगवान। जनकपूरी के राव हैं राजा जनक सुजाना। कन्या ब्याह रचाय के यह प्रण घन ठान॥
परशुराम के धनुष को जो कोई लेय ठठाए। सीताजी उसको बरें काय सुफल हो जाए।
देश देश के भूप सुन आए जनक द्वार। धनुष बाण उठत नहीं सबने मात्र हार ।।
नारद मुनि आए जभी राजो कीनो प्रश्न। सीता वर है कौन सा रामचंद्र हरि विश्न।।
विश्वामित्र लेकर चले लक्ष्मण श्रीभगवान्। सब राजा देखें खड़ें धनुष तोड़ दिया तान॥
फूलों की माला गले दीनी सीता डार। सब राजा घर कूं चले अपने मन में हार।।
पंडित कूं बुलवाए के लगन लिखौ शुभ वार। अनुराधा नक्षत्र धर और लिखा परिवार॥
गौरी गायत्री सभी कुलवन्ती सब नर। मंगल गावें कुशल वधू बरसत रंग अपारा ।।
घोड़ी सभग मंगाए कर कलंगी पाखर जीन। हीरे मोतियों का सेहरा मुकट धरौ परवीन।।
चंवर करे सेवल खड़े दशरथ करें सामान। चली बरात भगवान की फरकन लगे निशान।।
जनकपुरी देखे खड़ी मन में खुशी अपार। आई बरात भगवान की शोभ अपरम्पार॥
पंडित को बुलवा कर कलश गणेश ले हाथ। सब राजा मिलने चले जनकराव के साथ॥
राजा दशरथ से मिले जनक प्रीत कर जाएं। दूल्हे की सेवल करो जनवासे बिठलाए॥
लीक चुका राजा चले जनक राब के साथ। फेरों की त्यारी करी गुरु वशिष्ठ के हाथ।।
सीता श्रीभगवान को वेदी दिए बिठाएं। वेद पढ़े मुनि लायकर हो रहे जय जयकार।। गौरी गायत्री सभी कुलवन्ती सब नार। मृगा नयजी दें सीठने शोभा अपरम्पार॥ कन्या का संकल्प कर राजा जनक सुजाना। गुरु जशिष्ठ बोले जभी कहें स्वस्ति भगवान।।
कन्या विवाह रचाकर दीजो वित्त सामान। स्वीकार करो सब पंच मिल कृपा करो भावान्
॥इति श्रीरामचंद्रजी के विवाह का शाखोच्चार॥