भक्त का स्वभाव
प्रहलाद ने गुरुओं की बात मानकर हरिनाम कों न छोड़ा तब उन्होंने गुस्से में भरकर अग्निशिखा के समान प्रजवलित शरीर वाली कृत्या को उत्पन्न किया। उस अत्यन्त भयंकर राक्षसी ने अपने पैरों की चोट से पृथ्वी को कपाते हुए वहाँ प्रकट होकर बड़े क्रोध से प्रहलादजी की छाती में त्रिशुल से प्रहार किया। किंतु उस बालक के हृदय में लगते ही वह झलझलाता हुआ त्रिशूल टुकड़े टुकड़े होकर जमीन पर गिर पड़ा। जिस हृदय में भगवान् श्रीहरि निरन्तर प्रकट रूप से विराजते हैं उसमें लगने से वज्र भी टूक-टूक हो जाते हैं। फिर त्रिशूल की तो बात ही क्या है?