भक्तों के भगवान
मद भकक्ता: यत्र गायन्ति, तत्र तिष्ठामि नारद।
एक विधवा औरत थी। उसके दो बालक थे। वह गरीब होने के कारण उनका पालन पोषण करने में असमर्थ हो रही थी।एक दिन जब बच्चे पाठशाला से पढ़कर आ रहे थे तो उन्हें रास्ते में भय लगने लगा। दोनों बच्चों ने माँ से कहा-मां! दूसरे बालकों के साथ उनके नौकर पाठशाला तक जाते हैं।
हमें भी डर लगता है, हमारे साथ भी एक नौकर भेज दिया करो। मां ने आंसुओं को रोकते हुए कहा – बच्चों! डरने की क्या बात है? जिस जंगल में तुम्हें डर लगता है, वहां तो तुम्हारे मोहन दादा रहते हैं। दूसरे दिन जब बच्चों को डर लगने लगा तो उन्होंने मोहन दादा को आवाज लगानी शुरू कर दी।
भक्तों की पुकार पर मनमोहन दादा सूंदर श्याम सलोना स्वरूप धारण कर मोर मुकुट धारण किये प्रकट हो गये और उन बच्चों को जंगल के रास्ते को पार करा दिया। जब बच्चे अपने घर पहुँचे तो उन्होंने यह घटना अपनी माता को सुनाई।
माँ को बच्चों की बात पर विश्वास नहीं आया। एक दिन गुरुजी ने बच्चों से कहा कल सभी एक-एक लोटा दूध लायेंगे। दोनों बच्चों ने जब अपनी माता को बताया कि गुरुजी ने एक लोटा दूध मंगाया है, तो माँ ने कहा – बेटा!
हमारे पास इतने पैसे नहीं हैं, मैं दूध कहाँ से लाऊँगी। बेचारे उसके दोनों बच्चे चुप हो गये। जब वे पाठशाला जा रहे तो उन्होंने भय के कारण मोहन दादा को आवाज लगाई, मोहन दादा के आने पर बच्चों ने कहा – गुरुजी ने दूध मंगाया है।
मोहन दादा ने एक लोटा दूध दोनों बच्चों को दे दिया। जिन बच्चों के पास बड़े-बड़े लौटे थे गुरुजी पहले उनका दूध ले रहे थे। सबसे अन्त में जब गुरुजी ने इन दोनों बच्चों का दूध का लोटा अपने बर्तन में उंडलने लगे तो उनका बर्तन दूध से भर गया परन्तु लोटा फिर भी खाली नहीं हुआ।
गुरुजी ने उनसे पूछा – बेटा! तुम यह दूध कहाँ से लाये हो? बच्चों ने बताया यह हमारे मोहन दादा ने दिया था। गुरुजी ने कहा – तुम हमें अपने मोहन दादा के पास ले चलो। जंगल में पहुँचकर दोनों बच्चों ने मोहन दादा को आवाज लगाई तो मोहन दादा प्रकट हो गये। उनके दर्शन कर गुरुजी समझ गये कि ये भगवान श्रीकृष्ण हैं। गुरुजी ने उनके चरणों में साष्टांग प्रणाम किया।