कार्तिक पूर्णिमा
पुराणों में कहा गया हे कि इसी तिथि पर शिवजी ने त्रिपुरा नामक राक्षस को मारा था इसलिए इसे त्रिपुरी पूर्णिमा भी कहते हैं। इस तिथि को भगवान का मत्स्यावतार हुआ था। इस दिन गंगा स्नान, दीप दान आदि का विशेष महत्व है। इस दिन यदि कृतिका नक्षत्र हो तो महाकार्तिकी होती है, भरणी होने से विशेष फल देती हे।
विधान : “ऊँ नमो भगवते वासुदेवाये”मंत्र से भगवान कृष्ण की पूजा की जाती है। पांच दिनों तक लगातार घी का दीपक जलता रहना चाहिए। “ऊँ विष्णवे नमः स्वाहा” मंत्र से घी, तिल और जी की 108 आहुतियां देते हुए वचन करना चाहिए।