“बुद्धि हीनता”
एक पंडितजी अपने बेटे से कहा करते थे कि तुम संस्कृत में ही बोला करो, जिससे तुम्हें संस्कृत बोलने का अभ्यास हो जाये।
बेटे ने कहा–ठीक है पिताश्री।
पंडितजी एक दिन अपने गाँव से शहर जा रहे थे। चलते चलते रात्रि का समय हो गया। अंधेरे के कारण पंडितजी अचानक कुँए में गिर पड़े। उनके बेटे ने पास में खड़े हुए एक किसान से संस्कृत में बात करनी प्रांरम्भ कर दी।
‘कूपे पतितस्य मम पितु: निष्करधनं कुर्वन्तु।
उस लड़के की बात को किसान नहीं समझा और वह बार-बार उससे पूछ रहा था। तब कुँए में से पंडितजी ने कहा-ओरे मूर्ख! बे मौके तू । संस्कृत बोल रहा है। यहाँ तो पानी की वजह से सुबकियाँ लग रही हैं और हिचकियाँ आ रही हैं और तुझे संस्कृत का अभ्यास सूझ रहा है।
तब उसने हिन्दी में उस किसान से कहा। तब पंडितजी को कंए में से निकाला गया।