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अमरफल-immortal Fruit

अमरफल
पिता ने अपने नन्हे- से पुत्र को कुछ पैसै देकर बाजार भेजा फल लाने के लिये । बच्चे ने रास्ते मैं देखा, कुछ लोग, जिनके बदन पर चिथड़े भी पूरे नहीं हैं, भूख के मरि छटपटा रहे हैं । उसने पैसै उनको दे दिये । उन्होने उन पैसो से उसी समय उदरपूर्ति के लिये सामान खरीद लिया। बालक को इससे बडी खुशी हुई । वह मन-ही-मन फूलता हुआ खाली हाथ घर लौट आया। पिता ने पूछा – बेटा! फल नहीं लाये। बालक ने उत्तर दिया- आपके लिये अमरफल लाया हूँ पिताजी !
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Immortal Fruit
पिता ने पूछा – वह कोन-सा उसने कहा-पिताजी!  मेंने देखा -कुछ अपने ही-जैसे आदमियों को भूखे मरते हुए, मुझसे रहा नहीं गया। मैँने वे सब पैसै उनको दे दिये। उनकी आजभर की भूख मिट गयी हम लोग फल खाते, दो-चार क्षणों के लिये हमारे मुँह मीठे हो जाते परंतु इसका फल तो अमर है न पिताजी! पिता भी बड़े धार्मिक थे। पुत्र की बात सुनकर उन्हें बडी प्रसन्ता हुई ! यही बालक आगे चलकर संत रंगदास हुए
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