बुढिया की झोंपडी
किसी राजा ने एक जगह अपना महल बनवाया। उसके बगल में एक गरीब बुढिया की झोंपडी थी। झोंपडी का धुआँ महल में जाता था, इसलिये राजा ने बुढिया को अपनी झोंपडी वहॉ से हटा लेने की आज्ञा दी । राजा के सिपाहियों ने बुढिया से झोंपडी हटा लेने को कहा, पर उसने कोई उत्तर नहीं दिया। तब वे लोग उसे डॉट-डपटकर राजा के पास ले गये। राजा ने पूछा – बुढिया! तू झोंपडी हटा क्यों नहीं लेती ? मेरा हुक्म क्यों अमान्य करती है? बुंढिया ने कहा…’ महाराज !
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Hut of Old Lady |
आपका हुक्म तो सिर माथे पर पर आप क्षमा कों, मैं एक बात आपसे पूछती हूँ। महाराजा मैं तो आपका इतना बड़ा महल और बाग-बगीचा सब देख सकती दूं पर आपकी आँखों में मेरी यह टूटी झोंपडी क्यों खटकती है ? आप समर्थ हैं गरीब की झोंपडी उजड़वा सकते हैं पर ऐसा करने पर क्या आपके न्याय में कलङ्क नहीं लगेगा।
बुढिया की बात सुनकर राजा लज्जित हो गये और बुढिया को धन देकर उसे आदरपूर्वक लौटा दिया।