असल की नकल करने से असल का अभाव
रावण ने जब राम का, रूप लिया था धार।
माता के तुल्य लंका में, देखी सारी नार॥
रावण के सभी साथियों ने कुम्भकरण के महल में जाकर नाना प्रयत्न करके-जगाया। कुम्भकरण के जागने पर रावण ने कहा-हे भाई! ऐसी नींद किस काम की जिससे सोने लंका खाक हो रही हो तुम्हारे सोते रहने के कारण सर्पनखा के नाक कान कट गये और पुत्र मेघनाथ मारा गया। रावण की घबराहट देखकर कुम्भकरण व्याकुल होकर बोला-भाई साहब, ऐसी कौन सी विपत्ति आ गई, जिससे सूर्पनखां बहिन के नाक-कान कट गये और मेघनाथ मारा गया।
रावण ने पंचवटी से लेकर वर्तमान तक की समस्त घटना सुनाते हुए कहा कि सीता मेरे कब्जे में नहीं आ रही है। कुम्भकरण बोला–स्त्रियाँ तो जेवर की भूखी होती हैं, तुमने सीता को जेवरों का लालच क्यों नहीं दिया? रावण ने उत्तर दिया कि मैंने तो सीता के सामने सोने की लंका तक रख दी परन्तु उसने लंका की तरफ देखना तो दूर रहा, उसने थूका तक नहीं। मैं जब भी उसके पास जाता हूँ, वह अपने मुख से राम नाम का ही उच्चारण करती रहती है।
कुम्भकर्ण ने कहा–हे भाई! तुम तो मायावी हो, अपनी माया से राम का रूप धरकर उसके पास क्यों नहीं गये? रावण ने बताया-भाई! एक दिन मैं राम का रूप धरकर सीता के सम्मुख गया था परन्तु उस समय तो मेरी ऐसी दशा हो गई थी कि वह वर्णन से बाहर की बात है। अर्थात् जब मैंने राम का रूप बनाया तो मन्दोदरी को छोड़कर सीता सहित लंका में जितनी भी महिलायें थीं वे सबकी सब मुझे माँ, बहिन और बेटियों के रूप में दिखाई देन लगीं। इसलिए तुरन्त ही मैंने राम के रूप को त्याग दिया।
भाइयों! देखा राम की नकल कर उन जैसी सूरत बनाते ही रावण ने लंका में महिलाओं को किस रूप में देखा था? है और नकल, नकल ही है। इसलिए दूसरे देशवासियों की नकल करके सिवाय हानि के लाभ नही हो सकता।