आदर्श मित्र
हिष्मकराष्ट्र मेंसुकुलनाम काएकधर्मात्माराजा राज्य
करता था। नगर के पास
ही एक व्याध पक्षियों को फँसाकर उन्हें बेचकर अपनी जीविका चलाता
था।वहीं पर एक बड़ा लंबा-चौड़ा ‘मानस’ नामका सरोवर था। व्याध वहीं जाल फैलाया
करता था। वहाँ अनेकों प्रकार के
पक्षी दल-के-दल
आया करते थे। उस
समय हंसों का राजा चित्रकूट पर्वत की
गुफा में रहा करता था।
करता था। नगर के पास
ही एक व्याध पक्षियों को फँसाकर उन्हें बेचकर अपनी जीविका चलाता
था।वहीं पर एक बड़ा लंबा-चौड़ा ‘मानस’ नामका सरोवर था। व्याध वहीं जाल फैलाया
करता था। वहाँ अनेकों प्रकार के
पक्षी दल-के-दल
आया करते थे। उस
समय हंसों का राजा चित्रकूट पर्वत की
गुफा में रहा करता था।
एक
बार हंसों ने आकर उससे अपना
समाचार कहा तथा उस सरोवर की
बड़ी प्रशंसा की, साथ ही
वहाँ चलने की प्रार्थना भी की। हंसराज ने
कहा – यद्यपि वहाँ
चलना ठीक नहीं है तथापि
तुम लोगों का आग्रह ही है तो
चलो एक बार देख
आयें। ऐसा कहकर वह
भी अपने परिवार के साथ चल पड़ा।
बार हंसों ने आकर उससे अपना
समाचार कहा तथा उस सरोवर की
बड़ी प्रशंसा की, साथ ही
वहाँ चलने की प्रार्थना भी की। हंसराज ने
कहा – यद्यपि वहाँ
चलना ठीक नहीं है तथापि
तुम लोगों का आग्रह ही है तो
चलो एक बार देख
आयें। ऐसा कहकर वह
भी अपने परिवार के साथ चल पड़ा।
सरोवर के पास पहुँचकर हंसराज अभी
उतर ही रहा था
कि जाल में फँस गया, तथापि
उसने धीरज से काम लिया और
घबराया नहीं; क्योंकि वह
जानता था कि यदि
घबराकर हो हल्ला मचाऊँगा तो ये सभी
हंस भूखे ही भाग जायँगे । शाम को जब चलने की बारी
आयी और सबने हंस से चलने को
कहा तब उसने अपनी
स्थिति बतला दी।
अबक्याथा,
सभी हंस भाग चले।
बस, केवल उस का मन्त्री सुमुख रह गया। हंसराज ने
उससे भी भाग – जाने को
कहा और व्यर्थ प्राण
देने में कोई लाभ न होने की
बात बतलायी। पर सुमुख ने कहा-मैं आज यहाँ से
भाग भी जाऊँ तो
भी अमर तो होऊँगा
नहीं। हाँ, मेरा धर्म चला
जायगा। इसलिये मैं प्राण देकर
भीअपने धर्म की रक्षा करूँगा और तुम्हें बचाऊँगा।
सभी हंस भाग चले।
बस, केवल उस का मन्त्री सुमुख रह गया। हंसराज ने
उससे भी भाग – जाने को
कहा और व्यर्थ प्राण
देने में कोई लाभ न होने की
बात बतलायी। पर सुमुख ने कहा-मैं आज यहाँ से
भाग भी जाऊँ तो
भी अमर तो होऊँगा
नहीं। हाँ, मेरा धर्म चला
जायगा। इसलिये मैं प्राण देकर
भीअपने धर्म की रक्षा करूँगा और तुम्हें बचाऊँगा।
ऐसा कहकर वह वहीं रह
गया। दूसरे दिन प्रात:काल
व्याध आया। उसने देखा
कि एक स्वतन्त्र हंस भी यों
ही डटा है तो
उसके पास जाकर कारण पूछा। उसने
अपनी सारी बात बतलायी। व्याध ने
कहा – तू चला जा,
मैं तुझे जीवन-दान
देता हूँ। सुमुख ने कहा-नहीं, तू
मुझे खा ले या
बेच डाल,पर मेरे
राजा को छोड़ दे। इस पर
व्याध का हृदय द्रवित हो गया
और उसने यह कहकर
हंसराज को छोड़ दिया कि सुमुख-जैसे मित्र किसी
बिरले के ही भाग्य में होंगे। –जा० श०
गया। दूसरे दिन प्रात:काल
व्याध आया। उसने देखा
कि एक स्वतन्त्र हंस भी यों
ही डटा है तो
उसके पास जाकर कारण पूछा। उसने
अपनी सारी बात बतलायी। व्याध ने
कहा – तू चला जा,
मैं तुझे जीवन-दान
देता हूँ। सुमुख ने कहा-नहीं, तू
मुझे खा ले या
बेच डाल,पर मेरे
राजा को छोड़ दे। इस पर
व्याध का हृदय द्रवित हो गया
और उसने यह कहकर
हंसराज को छोड़ दिया कि सुमुख-जैसे मित्र किसी
बिरले के ही भाग्य में होंगे। –जा० श०