होली का पूजन
यह पर्व फाल्गुन की पूर्णिमा को मनाया जाता है। होली के दिन सुबह पहले हनुमान जी और पितरों को धोक लगाएं। जल, रोली, मौली, चावल, फूल प्रसाद, नारियल चढाएं। दीया धूप जलाए और ठाकुर बाड़ी में भी धोक मार लें। सबके टीका लगाएं। भैरों जी का नाम लेकर सब बच्चों को पैसे पर हाथ लगवाकर तेल मंगवाकर चौराहे पर रखवा दें और आप जिस देवता को मानते हों उसकी पूजा करें। यदि किसी बेटा हो या बेटे के विवाह का उद्यापन करना हो तो होली के दिन उद्यापन करें। तेरह जगह चार चार पूडी, थोड़ा सा हलवा रखकर अपनी इच्छानुसार रूपये रखकर हाथ फैग्कर सासूजो के पेर छूकर दें। सुपारी को माला घर में रखें। होली के दिन शाम को पक्की रसोई बनाएं। होली को आटे का हलवा, पूरी , बड़ा, साग, फली, करिया पापड बनाएं ओर देवताओं के नाम की थाली में निकाल दें। भगवान का भोग लगाएं। निकाली हुई थाली बामनी को दें। ब्राह्मण को भी जिमा दें। खुद जीमें। पूजन विधि-पहले जमीन पर थोड़ा सा गोबर ओर जल से चौका दें। चार औखली बीच में रखकर मालाएं सजा दें। जिस समय होली हो उस समय जेलमाला (बडकुल्ला की माला) की पूजा करें। जितने मर्द हों उतने ही काठ के खांडा चढाएं। जितने लड़के हों उतनी काठ की तलवार चढ़ायें और जेलमाला की पूजा करें। बाद में तलवार घर में रखें। जल, मौली, रोली, चावल, फूल, गुलाल, गुड़, पीसा, माला चढाएं, दीया जलाकर चार फेरी दें। उस जेलमाला में से चार जेलमाला घर में रखें। सारी जेलमाला एक टोकरी में रखकर जहां पर होली जलती हो वहां पर ले जाएं ओर पूजा की सामग्री की थाली, कच्चे सूत की कुकड़ी ले जाएं। सारी जेलमाला, नारियल आदि चढ़ा दें। बाद में होली की पूजा करके घर आ जाएं। जब होली जलाएं तो थोड़ी सी अग्नि घर ले जाएं और अग्नि को कमरे में धूप करलें। रात को ऊपर जा कर झल दे के जल की घंटी से सात बार अर्घ्य दें। रोली, चावल चढ़ा दें। होली के चार गीत, बंधावे गायें। सासूजी के पैर छूकर रूपये दें। दूसरे दिन सब प्रसाद लें। अपने नोकर, जमादारनी को होली के रुपये दें।