दूषित अन्न का प्रभाव
महाभारत का युद्ध समाप्त हो गया था। धर्मराज युधिष्टिर एकच्छत्र सम्राट् हो गये थे। श्रीकृष्णचन्द्र की सम्मति से रानी द्रौपदी तथा अपने भाइयों के साथ वे युद्धभूमि में शरशय्या पर पड़े प्राण त्याग के लिये सूर्य के उत्तरायण होने की प्रतीक्षा करते परम धर्मज्ञ भीष्मपितामह के समीप आये थे। युधिष्टिर के पूछने पर भीष्म पितामह उन्हें वर्ण, आश्रम तथा राजा-प्रजा आदि के विभिन्न धर्मो का उपदेश कर रहे थे। यह धर्मोपदेश चल ही रहा था कि रानी द्रौपदी को हँसी आ गयी। . “बेटी! तू हँसी क्यों ?’ पितामह ने उपदेश बीच में ही रोककर पूछा। द्रौपदी जी ने संकुचित होकर कहा -मुझसे भूल हुईं। पितामह मुझे क्षमा करें। पितामह का इससे संतोष होना नहीं था। बे बोले“बेटी। कोई भी शीलवती कुलवधू गुरुजनों के सम्मुख अकारण नहीं हँसती। तू गुणवती है, सुशीला है। तेरी हँसी अकारण हो नहीं सकती।