हरतालिका तीज
भाद्रपद शुक्ल तृतीया को यह ब्रत किया जाता है। यह व्रत सुहागिन स्त्रियां रखती हैं। इस दिन शंकर-पार्वती सहित बालू की मूर्ति बनाकर पूजा करनी चाहिये तथा सुन्दर वस्त्रों ओर कदली स्तम्भों से घर को सजाकर नाना प्रकार के मंगल-गीतों से रात को जागरण करना चाहिए। इस ब्रत को करने वाली स्त्रियां पार्वती के समान सुखपूर्वक पतिरमण करके शिवलोक को जाती हैं।
हरतालिका ब्रत की कथा
शंकरजी ने पार्वती को कहा कि एक बार तुमने हिमालय पर्वत पर जाकर गंगा किनारे मुझको पति के रूप में पाने के लिये कठिन तपस्या की थी। उसी घोर तपस्या के कारण नारदजी हिमलाय के पास गये, और कहा कि विष्णु भगवान आपकी कन्या के साथ विवाह करना चाहते हैं, नारद की ऐसी अपने मन से बनाई हुई बात को तुम्हारे पिता ने स्वीकार कर लिया। फिर नारदजी विष्णु के पास गये और कहा कि आपका विवाह हिमालय ने पार्वती के साथ करने का निश्चय किया है। आप इसकी स्वीकृति दें। नारदजी के जाने के पश्चातू पिता हिमालय ने तुम्हें भगवान विष्णु के साथ निश्चित किया गया विवाह सम्बन्ध बताया। यह बात सुनकर तुम्हें बहुत ही दुख हुआ। एक सखी के द्वारा दुख का कारण पूछे जाने पर तुमने कहा कि मैं इधर भगवान शंकर के साथ विवाह करने के लिये कठिन तपस्या कर रही हूं इधर हमारे पिताजी विष्णु जी के साथ मेरा विवाह करना चाहते हैं। तुम मेरी सहायता करो। नहीं तो में प्राण त्याग दूंगी। सखी ने सांत्वना दी और कहा-“’मैं तुम्हें एक ऐसे वन में ले चलूंगी कि तुम्हारे पिता को पता नहीं चल पायेगा। इस प्रकार तुम अपनी सखी की सम्मति से घने जंगल में चली गई। इधर तुम्हारे पिता हिमालय ने घर में इधर-उधर खोजने पर जब तुम्हें नहीं पाया तो बहुत चिन्तित हुए क्योंकि नारद जी ने विष्णु के साथ विवाह करना मान लिया था। वचन भंग की चिन्ता ने उन्हें मूर्छित कर दिया तब सभी पर्वत यह बात जानकार तुम्हारी खोज में लग गये। उधर सखी सहित तुम सरिता किनारे की एक गुफा में मेरे नाम पर तपस्या करने लगीं।
भाद्रपद शुक्ल तृतीया को उपवास रखकर तुमने सिकता का शिवलिंग संस्थापित करके पूजन तथा रात्रि-जागरण भी किया। तुम्हारे इस कठिन तप-ब्रत के कारण मुझे तुरन्त तुम्हारे पूजन-स्थल पर आना पड़ा। तुम्हारी मांग इच्छानुसार दुओ सुझे अर्धागिनी के रूप में स्वकार करना पढ़ा। इसके बाद मैं तुरन्त पर्वत पर चला गया। प्रात: बेला में जब तुम पूजन सामग्री नदी में छोड रही थीं उसी समय हिमालय राज उस स्थान॑ धर पहुंच गये।
वे तुम दोनों को देखकर पूछने लगे-बेठी। तुम यहाँ कैसे आ गईं? तब तुमने विवाह वाली बात सुना दी। वे तुम्हें घर ले आये। तब शास्त्र-विधि से तुम्हारा मेरे साथ विवाह हुआ। हरितालिका व्रत का नामकरण सखी द्वारी हरी जाने पर इसका (हरत-तालिका) पड़ गया। शंकरजी ने पार्वती को थह भी बताया कि जो स्त्री इस व्रत को परम श्रद्धा से करेगी उसे तुम्हारे समान ही अचल सुहाग मिलेगा।