सब में भगवान दर्शन
नाग महाशय की झोंपड़ी पुरानी हो चुकी थी। उसकी मरम्मत आवश्यक थी। मजदूर बुलाया गया। परंतु जब वह इनके घर पहुंचा तो नाग महाशय ने उसे हाथ पकड़कर चटाई पर बैठाया। आप तम्बाकू भर लाये चिलम में उसको पीने के लिये। वह छप्पर पर चढ़ने लगा तो रोने लग गये-इतनी धूप में भगवान् मेरे लिये श्रम करेंगे!
बहुत प्रयत्न करने पर भी मजदूर रुका नहीं, छप्पर पर चढ़ गया तो आप छत्ता लेकर उसके पीछे जा खड़े हुए। उसके मस्तक पर पसीना आते ही हाथ जोड़ने लगे-आप थक गये हैं। अब कृपा करके नीचे चलिये। कम-से-कम तम्बाकू तो पी लीजिये।
इसका परिणाम यह हुआ था कि जब ये घर से कहीं चले जाते थे, तब मजदूर इनके घर की मरम्मतका काम करते थे। आप बैठिये ! बैठिये भगवन्! आपका यह सेवक है न? आपकी सेवा करनेके लिये। नौका पर बैठते तो नाग महाशय मल्लाह के हाथसे डाँड़ ले लेते थे। मल्लाहों को बड़ा संकोच होता था कि वे बैठे रहें और एक परोपकारी सत्पुरुष परिश्रम करता रहे। परंतु नाग महाशय से यह कैसे सहा जाय कि उनकी सेवा के लिये भगवान् श्रम करें और सभी रूपों में भगवान् ही हैं, यह उनका विचार-विश्वास नहीं, दृढ़ निश्चय था।