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उदारता और परदु:खकात्तरता -generosity and altruism

उदारता और  परदु:खकात्तरता 
स्वर्गीय महा महोपाध्याय पं० श्री विद्याधर जी गौड़ श्रुति स्मृति-प्रतिपादित्त सनातन वैदिक धर्मं के परम अनुयायी थे। कईं ऐसे अवसर आये, जिनमें धार्मिक मर्यादा की किंचित् अवहेलना करने से उन्हें प्रचुर मान धन मिल सकता था परंतु उन्होंने उसे ठुकरा दिया ।
quotes on generosity
Generosity &Altruism
इनके पास बहुत्त से लोगों के मकान वर्षों से रेहन और बन्धक पड़े थे । जब इनकी मृत्यु का समय आया, तब मकानदारों ने आपके शरणागत होकर ऋण चुकाने में अपनी असमर्थता प्रकट की । इन्होंने उनके दुख से कातर होकर बिना कुछ भी कहे यह कह दिया कि आपकी जो इच्छा हो सो दे जाइये । इस प्रकार कुछ ले देकर उनको चिन्तामुक्त कर दिया ।
आप कहा करते थे, इस शरीर से यदि किसी की भलाई नहीं की जा सकी, तो बुराई क्यों की जाय।
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