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पोष मास की गणेशजी की कथा – हिन्दुओ के व्रत और त्योहार

पोष मास की गणेशजी की कथा 

एक बार रावण ने स्वर्ग में सभी देवताओं पर विजय प्राप्त करके प्राप्त करके उन पर अपना अधिकार जमा लिया था। उसने संध्या करते हुए बालि को भी जा पकड़ा था। बालि वानरों का राजा था। उसकी राजधानी किष्किन्धा नगरी में थी। जब संध्या करते समय रावण ने बालि को पकड़ा तो बालि ने अपना पराक्रम दिखाते हुए रावण को बगल में दबाया ओर अपनी राजधानी में ले आया। वहां पर अपने पुत्र अंगद को खिलोने स्वरूप रावण दे दिया। अंगद रावण को खिलोना ही समझता था और रस्सी से बांधकर उसे इधर-उधर खींचा करता था। इस पर सभी किष्किधा वासी हंसते थे। अपने ऊपर अभिमान करने के कारण ही रावण ऐसी स्थिति में पहुंचा था। रावण की यह हाल उसके दादा से देखी न गई और उन्होंने अपने पौत्र रावण को कहा कि वह विघ्नविनाशक गणेशजी की आराधना करे। रावण ने उनकी यह बात मानी ली ओर गणेशजी की तपस्या करके अपने सारे बंधनों से मुक्ति प्राप्त कर ली।
पोह महीना में मल लगे
मल एक महीने के लगते हैं मल में कोई शुभ काम नहीं करता। मल के जब 15 दिन हो जायें तो एक दिन तेल के बड़े पकोड़े उतारकर चील, कबूतर को खिला दें और डकौत को दे दें। सबको बड़े पकोड़े बांटकर बाद में शुभ कार्य
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