भाद्रपद मास की गणेशजी की कथा
पुराने समय में एक बडे ही प्रतापी राजा का राज था। उनका नाम नल था। उनकी अत्यंत रूपवती पत्नी थी। उसका नाम था दमयन्ती। राजा प्रजा का पालन मन लगाकर करते थे। इसलिये वे स्वयं सुखी थे ओर प्रजा भी पूर्ण सुखी थी। किसी प्रकार का कोई दुख नहीं था।
लेकिन किसी श्राप के कारण राजा नल विपत्तियों कौ बाढ़ में बह गये। उन पर इतनी विपत्तियां आयीं, जिनकी कोई गिनती नहीं की जा सकती। उनके हाथी खाने में अनेक मदमस्त हाथी थे, जिन्हें चोर चुरा ले गये। घुड्साल के सभी घोड़ों को भी चोर चुरा ले गये। डाकुओं ने उनके महल पर धावा बोला ओर सब कुछ लूटकर आग लगा कर चले गये। बचा-खुचा सब स्वाहा हो गया। ज्यों-त्यों कुछ संभले तो जुआ खेलकर सब नष्ट हो गया।
विपत्ति की सीमा लंघ गई। राजा-रानी नगर छोड़कर राज्य से बाहर हो गये। जंगल-जंगल घूमने लगे। पति-पत्ली एक तेली के यहां पहुंचे। तेली ने दोनों को आश्रय दिया। उसे ज्ञात नहीं था कि ये नल ओर दमयन्ती हैं। नल को कोल्हू के बैल को हाँकने का काम सौंपा हा दमयन्ती को सरसों साफ करने का। राजा रानी ने ये काम कभी किये नहीं थे, अत: उन्हें थकान हो जाती और तेली तेलिन के कड़वे वचन को उन्हें झेलना पड़ता था। राजा अपनी अनेक जानी पहचानी जगहाँ फ भी गया पर श्राप के कारण हर स्थान पर उनका अपमान हुआ।
जंगल में घूमते-घूमते राजा रानी से बिछुड गया। जहां-तहां भटकन लगा। दमयन्ती जंगल में अकेली रह गई। बेचारी असहाय महिला क्या करे, क्या न करे। अन्य मुसीबतें झेल भी ले, पर पति-वियोग की आग से केसे बचे।
एक दिन अचानक ही रानी की मुलाकात एक शरभंग ऋषि से हो गई। ऋषि द्वारा पूछने पर दमयन्ती ने अपने ऊपर आई सारी विपत्ति की कथा उनको कह डाली। शरभंगजी ने दमयन्ती से कहा-‘ पुत्री! तुम गणेशजी की पूजा-अर्चना करो ओर गणेश चौथ का ब्रत करो।”!
रानी तो साधनहीन थी। ज्यों-त्यों करके उने गणेश जी का व्रत किया। उस ब्रत के करने से रानी को उसका पति मिल गया ओर उसके
ै पति को खोया हुआ राज्य भी वापस मिल गया। और अब राजा-रानी
गणेशजी के अनन्य भक्त हो गये। श्रावण मास शिवजी की आराधना का विशिष्ट मास हे तो भगवान् कृष्ण का जन्मदिवस मनाया जाता हे इस मास में। हमारा स्वतन्त्रता दिवस पन्द्रह अगस्त भी प्राय: इसी मास में पड़ता है। वर्ष के इस छठे मास को लोकभाषा में अधिकतर भादों कहा जाता है। श्रावण के घने बादल और बरसात इस मास में कुछ कम हो जाते हैं, परन्तु हरियाली अभी भी उसी प्रकार छाई रहती हे। गर्मियों में हवा के साथ उड़ने वाले धूलकण वर्षा की बूंदों के साथ भूमि पर आ चुके होते हैं और नमी होने के कारण धूल उड़ती नहीं, अत: बड़ा सुहावना लगता है तारों और चन्द्रमा से युक्त स्वच्छ आकाश।