तनिक सा भी असत्य पुण्य को नष्ट कर देता है।
महाभारत के युद्ध में द्रोणाचार्य पाण्डव-सेना का संहार कर रहे थे। वे बार-बार दिव्यास्त्रों का प्रयोग करते थे। जो भी पाण्डव-पक्ष का वीर उनके सामने पड़ता, उसी को वे मार गिराते थे। सम्पूर्ण सेना विचलित हो रही थी। बड़े-बड़े महारथी भी चिन्तित हो उठे थे।