पतिव्रत धर्म का प्रभाव
किसी वन में साधु महात्मा कठिन तपस्या कर रहे थे। एक दिन अचानक एक चिड़िया ने उनकी पीठ पर बींट कर दी। महात्माजी को इतना क्रोध आया कि जब उन्होंने चिड़िया की तरफ देखा तो वह तुरन्त भस्म हो गई।
यह घटना देखकर साधु महात्मा को अपनी तपस्या पर बड़ा गर्व होने लगा और वह वन में से लोगों पर अपना प्रभुत्व जमाने के लिए नगर की ओर चल दिया। जब वह एक गृहस्थ के घर पर पहुँचा तो उस समय उस घर की गृहिणी घर के काम में संलग्न थी। साधु ने भिक्षा के लिए आवाज लगाई।
गृहणी ने कहा – महाराज! तनिक ठहरिये। मैं अपने पति को पंखे से हवा कर रही हूँ। ये अभी , भोजन करके उठने वाले हैं। जैसे ही ये उठेंगे, त्योंहि मैं भोजन, द्वारा आपकी सेवा करूँगी। पतिव्रता नारी की बात सुनकर क्रोधी महात्मा को अपने तप का घमंड सवार हो गया ।
वह कहने लगा – अरी ! तू हमारे । जैसे तपस्वी साधु से बातें बनाकर बड़ी बनना चाहती है परन्तु स्मरण रख, तुझे इसका फल अवश्य मिलेगा। । घमंड में चूर महात्मा की बात सुनकर पतिव्रता ने नम्रता से उत्तर दिया – महात्माजी! क्रोध मत करिये क्योंकि मैं वन की वह चिड़िया नहीं हूँ जो तुम्हारे आँख के इशारे से भस्म हो जाऊँगी।
पतिव्रता नारी की यह बात सुनते ही साधु महाराज का घमंड चूर-चूर हो गया और हाथ जोड़कर उस पतिव्रता नारी के चरणों में गिरकर गिड़-गिड़ाने लगा – मुझे सत्य बात बताओ, कौन सी तपस्या करने से तुम्हें यह ज्ञान प्राप्त हुआ है? पतिव्रता नारी बोली – महात्माजी! इस संसार में पतिव्रता नारियों को कुछ भी दुर्लभ नहीं है। यदि वे चाहें तो काल को अपने वश में कर सकती हैं।
इसका उदाहरण सावित्री है जिसने अपने पति सत्यवान को काल के चंगुल से छुड़ाया था। ऐसी नारियाँ आवश्यकता पड़ने पर दिन को रात्रि और रात्रि को दिन में बदल सकती हैं। मैंने केवल अपने पति की सेवा मात्र से यह ज्ञान प्राप्त किया है। इसलिए आप आश्चर्य में न पड़िये।
पतिव्रता नारी की यह बात सुनकर वह तपस्वी महात्मा निराभिमान होकर अपने आश्रम को लौट गये तथा प्रेम पूर्वक परमेश्वर के भजन में लगे रहकर प्राणी मात्र पर दया-दृष्टि रखने लगे।
शिक्षा – पतिव्रता स्त्रियां संसार में कठिन से कठिन कार्य करके अपने सहित अपने पति और कुट॒म्ब को स्वर्ग तक ले जा सकती हैं। इसलिए प्रत्येक स्त्री को पतिव्रता धर्म में तत्पर रहना आवश्यक है।