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नेक कमाईं की बरकत – Earn only good money

 नेक कमाईं की  बरकत 
प्राचीन काल मे किसी शहर मे एक राजा रहता था । वहीं पास के ही वन में एक ब्राह्मण भी रहता था । उस ब्राह्मण को एक कन्या थी जो विवाह के योग्य हो गयी थी। सभी की सलाह से ब्राह्मण उस कन्या के विवाह के लिये उसी राजा के पास धन माँगने पहुँचा। राजा ने उसे दस हजार रुपये दिये। ब्राह्मण ने कहा – महाराज ! यह तो बहुत थोडा है। राजा ने दस हजार पुन: दिलवाये। ब्राह्मण इस पर भी कहता रहा – महाराज़ ! यह तो बहुत ही कम है। अन्त में राजा अपना समूचा राज्य ही ब्राह्मण को देने लगा। पर ब्राह्मण पूर्ववत् यही कहता रहा कि महाराज ! यह तो बहुत कम है ।
लाचार होकर राजा ने पूछा – तो मुझे आप क्या देने को कह रहे हैं । ब्राह्मण ने कहा – आपने अपने परिश्नम द्वारा जो शुद्ध धन उपार्जित किया हो वह चाहे बहुत थोड़ा ही हो वही बहुत है – मुझे वही दीजिये ।
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राजा थोडी देर तक सोच – विचार करता रहा। फिर उसने कहा – मैं प्रात काल ऐसा धन आपको दे सकूँगा । तदनन्तर दस बजे रात को वह अपना वेशभूषा बदल कर शहर मे घूमने लगा ।। उसने देखा कि सब लोग तो चैन की नींद सो रहे है पर एक लोहार अपना काम अभी त्तक करता जा रहा है ।

राजा उसके पास गया  और बोला –  भाई ! मैं बड़ा गरीब आदमी हूँ यदि तुम्हारे पास कोई काम हो तो देने की दया करो लोहार ने कहा – मेरे पास यही इतना काम है यदि तुम इसे प्रातकाल तक कर डालो तो मैं तुम्हें चार पैसे दूंगा राजा ने उस काम को तथा उसके एक आध और काम को कर डाला । लोहार ने उसे चार पैसे दिये और उनको उसने राजधानी में आकर ब्राह्मण को दे दिया । ब्राह्मण भी उसका सारा रांज-पाट छोड़ केवल चार पैसे ही लेकर घर चला गया । जब स्त्री ने पूछा कि राजा के पास क्या मिला तो उसने चार पैसे दिखलाये । ब्राह्मणी झुंझला गयी और उसके चारों पैसे छीनकर जमीन मे फेंक दिये।

दूसरे दिन उस आँगन मेँ चार वृक्ष उग आये जिनमें केवल रत्न के ही फ़ल लगे थे । उन्हीं से उसने कन्या का विवाह किया और वह संसार का सबसे बड़ा धनी भी हो गया। यह समाचार सुनकर सारा नगर दंग रह गया। राजा भी सुनकर देखने आया। ब्राह्मण ने उस वृक्ष को उखाड़कर राजा को वे चार पैसे दिखला दिये और बतलाया कि इसी से मैंने तुम्हारे रांज-पाट को छोड़कर तुम्हारी यह ईमानदारी तथा श्रम की कमाई माँगी थी । नेकी की कमाई पहले भले ही थोडी दीखे पर पीछे वह मनुष्य को सभी प्रकार से सुखी और सम्पन्न बना देती है ।

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